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लघु शांति स्तव सूत्र
१२७ जब शांतिनाथ भगवान के लिए प्रयुक्त मंत्राक्षरों द्वारा जयादेवी की स्तुति की जाती है, तब स्तुत जयादेवी खुश होकर शांतिनाथ भगवान को नमस्कार करनेवाले लोगों को शांति प्रदान करती हैं; उनके उपद्रवों का निवारण करती हैं और साधना के योग्य वातावरण का सृजन करती हैं ।
नमो नमः शान्तये तस्मै - उन शांतिनाथ भगवान को नमस्कार हो, जिन शांतिनाथ भगवान के नामाक्षर पूर्वक स्तुत जयादेवी शांति प्रदान करती हैं, उन शांतिनाथ भगवान को मेरा पुनः पुनः नमस्कार हो । यहाँ दो बार 'नमो' शब्द का उच्चारण हृदय के भावों की अतिशयता का सूचक है।
इस प्रकार स्तवनकारश्री ने शांतिनाथ भगवान को नमस्कार करने रूप नवरत्नमाला का अंतिम मंगल किया है। ये दोनों गाथाएँ बोलते हुए साधक सोचे कि, “शांतिनाथ भगवान के प्रति अपार भक्ति धारण करनेवाली देवी कितनी विवेकी हैं; इतनी ऋद्धि, समृद्धि और शक्ति होने के बावजूद वे मानती हैं कि वे स्वामी के आगे कुछ भी नहीं है । इसी कारण जो भक्त उनकी नहीं बल्कि प्रभु की भक्ति करते हैं उन को वे शांति अर्पित करती हैं। धन्य हैं उनकी विवेकपूर्ण
भक्ति को!” अवतरणिका:
इस स्तव की रचना किस प्रकार हुई और इसका फल क्या है ? उसे अब स्तवनकारश्री बताते हैं :