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________________ १२६ सूत्र संवेदना-५ एवम् अर्थात् इस प्रकार (जो पहले कहा उसके अनुसार)46; स्तुत जयादेवी । यहाँ 'इस प्रकार', शब्दों का अर्थ दो प्रकार से हो सकता है । १. गाथा नं. ७ से इस गाथा तक जयादेवी की जिस प्रकार स्तुति की गई है उस प्रकार अथवा २. इस प्रकार स्तुत = गाथा ६ (यस्येति नाममन्त्र) में कृततोषा विशेषण द्वारा स्तवित - 'शांतिनाथ भगवान के नाममंत्र के प्रधान वाक्य से तुष्ट होनेवाली (खुश होनेवाली) जयादेवी' ऐसे विशिष्ट उल्लेख द्वारा स्तुत जयादेवी । शांतिनाथ भगवान की परम भक्त ऐसी जयादेवी उनका नामोच्चारण सुनते ही अत्यंत प्रफुल्लित हो जाती है । उनकी यह खुशी ही उनकी भक्ति और गुणगरिमा को सूचित करती है। इस प्रकार स्तुत जयादेवी शांतिनाथ भगवान को नमस्कार करनेवालों को शांति देती हैं । जिस प्रकार सुपुत्र या सुशिष्य जानते हैं कि उनमें जो कुछ भी है वह उनके पूज्यों के कारण ही है; इसलिए वे अपने पूज्यों का नाम लेने में ही अपनी धन्यता मानते हैं; उसी प्रकार जयादेवी भी जानती हैं कि, "मुझमें जो कुछ भी है वह मेरे स्वामी शांतिनाथ भगवान का ही प्रताप है। उनके बिना इस संसार में मेरे अस्तित्व की कोई भी किंमत नहीं है। मैं तो संसारी हूँ । मेरे नाथ शांतिनाथ प्रभु अनंत शक्ति के स्वामी हैं। उनकी भक्ति मुझे अनंत ज्ञानादि गुणसंपत्ति का स्वामी बना सकती है ।" इसलिए जो शांतिनाथ भगवान के नामपूर्वक जयादेवी की स्तुति करते हैं, उनको जयादेवी शांति प्रदान करती हैं। अथवा 46. पूर्वोक्तप्रकारेण - सिद्धचंद्रगणिकृतटीका
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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