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लघु शांति स्तव सूत्र जा सकता है, वैसे ही किसी भी प्रकार के यंत्रों के बगैर मात्र मंत्र साधना के बल पर देवी-देवताओं के साथ संपर्क हो सकता था । अवतरणिका:
अंतिम नौ गाथाओं से प्रारंभ की गई नौ रत्नमाला रूप जयादेवी की स्तुति के अंत में ग्रंथकारश्री पुनः शांतिनाथ भगवान को नमस्कार कर अंतिम मंगल करते हैं :
गाथा :
एवं यन्नामाक्षर-पुरस्सरं संस्तुता जयादेवी । कुरुते शान्तिं नमतां, नमो नम शान्तये तस्मै ।।१५।।
अन्वयः
एवं यन्नामाक्षर-पुरस्सरं संस्तुता जयादेवी।
नमतां शान्तिं कुरुते, तस्मै शान्तये नमो नमः ।।१५।। गाथार्थ :
इस प्रकार जिसके (शांतिनाथ भगवान के) नामाक्षरपूर्वक स्तुति की गई जयादेवी, नमस्कार करनेवाले लोगों को शांति प्रदान करती है, उन शांतिनाथ भगवान को नमस्कार (हो।) विशेषार्थ :
एवं यन्नामाक्षर पुरस्सरं संस्तुता जयादेवी कुरुते शान्तिं नमताम्इस प्रकार जिसके (शांतिनाथ भगवान) नामाक्षर पूर्वक स्तुत जयादेवी नमस्कार करनेवालों को शांति प्रदान करती है, उन शांतिनाथ भगवान को नमस्कार करके अंतिम मंगल करते हैं :