________________
१२४
सूत्र संवेदना-५
मंत्राक्षर ही देवी का स्वरूप है। 'ॐ' तथा नमो पूर्वक के इस मंत्राक्षर द्वारा देवी की स्तुति की गई है। इसमें 'फुट' शब्द विघ्न से रक्षण के लिए प्रयोजित किया गया है।
जिज्ञासा : देवी मंत्राक्षर रूप कैसे हो सकती है ? तुप्ति : सामान्य तौर से यह बात समझ में नहीं आयेगी; फिर भी जैसे आज के ज़माने में कम्प्यूटर के लिए कोई व्यक्ति एक कोड नंबर स्वरूप होता है, वैसे ही पूर्व में विशिष्ट साधना करनेवाले योगियों के लिए देवी-देवता एक मंत्राक्षर रूप होते थे । वे जब विशिष्ट मंत्रों का प्रयोग करते थे, तब देवलोक में रहनेवाले देवी-देवता भी उन मंत्राक्षरों के प्रभाव से वहाँ उपस्थित होते थे। आज जैसे यंत्रों के सहारे एक फोन नंबर या कोड नंबर द्वारा उन-उन व्यक्तियों के साथ संपर्क किया
हाँ - यह मंत्राक्षर सभी संपत्तियों का प्रभव स्थान है; तथा रूप, कीर्ति, धन, पुण्य, प्रयत्न, जय
और ज्ञान को देनेवाला है। हीं - यह मंत्राक्षर अति दुःख के दावानल को शांत करनेवाला, उपसर्ग को दूर करनेवाला, विश्व में उपस्थित महासंकटों को दूर करनेवाला तथा सिद्ध-विद्या का मुख्य बीज है। परन्तु यहाँ इस का अतिशय करनेवाले के अर्थ में प्रयोग किया गया है। हूँ - यह मंत्राक्षर अरिघ्न (शत्रु नाशक) होने के साथ विजय और रक्षण को देनेवाला तथा पूज्यता को लानेवाला है। हूँ - यह मंत्राक्षर शत्रुओं के कूटव्यूहों का नाश करनेवाला है । यः - यह मंत्राक्षर सभी अशिवों का प्रशमन करनेवाला है। क्षः - यह मंत्राक्षर भूत, पिशाच, शाकिनी तथा ग्रहों की असर को दूर करनेवाला है तथा दिग्बंधन का बीज है। हीं - यह मंत्राक्षर यहाँ त्रैलोक्याक्षर के रूप में प्रयुक्त किया गया है, जो सभी भयों का नाश करनेवाला है। फुट फुट - यह मंत्राक्षर अस्त्र-बीज है । फुट का ताडन और रक्षण दोनों के लिए प्रयोग किया जाता है । यहाँ रक्षण का अर्थ ग्रहण करने योग्य है । स्वाहा - यह मंत्राक्षर शांतिकर्म के लिए पल्लव (अंत में आनेवाला मंत्राक्षर) है ।