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________________ ११९ लघु शांति स्तव सूत्र हो, भविष्य में भी कभी किसी को दुःख, अशांति, भय वगैरह न हो उसके लिए हे देवी ! आप सदा के लिए कुशल करें..." जिज्ञासा : बाह्य उपद्रवों के शमन के लिए वैरागी आचार्य भगवंत क्या इस प्रकार अविरतिधर देवी को आदेश दे सकते हैं? तृप्ति : आचार्य भगवंत किसी भी सांसारिक कार्य के लिए ऐसा आदेश नहीं कर सकते, परन्तु संसार का नाश करने के लिए जो आराधना-साधना कर रहा है, ऐसा चतुर्विध संघ जब किसी संकट में हो, उसकी समाधि जब टूट रही हो तब श्रीसंघ की साधना निर्विघ्न हो, उसका समाधिभाव बना रहे, इस उद्देश्य से सम्यग्दृष्टि, परम विवेकी आचार्य भगवंत किसी देव, देवी को इस प्रकार आदेश करें तो उसमें कुछ अयोग्य नहीं लगता । हाँ ! उसमें स्वार्थ या संसार संबंधी कोई भाव हो तो ज़रूर ऐसा कार्य अयोग्य बन जायेगा। ये दोनों गाथा बोलते हुए साधक को सोचना चाहिए कि - “आचार्य भगवंतों का पुण्य प्रभाव कैसा होगा ! और जयादेवी का भक्ति भाव कैसा होगा कि आचार्य भगवंत की प्रेरणा होने पर जयादेवी कार्य करने को तत्पर बन गईं और दुष्ट देव को दूर कर अपनी शक्ति से शांति फैला सकीं। आज संघ में सैकड़ों समस्याएँ हैं। साधकों के मन भी आज विचलित हो गए हैं । संघ की शांति के लिए अनेक आचार्य अनेक प्रकार से प्रयत्न कर रहे हैं तो भी न तो कोई देव, देवी प्रत्यक्ष रूप में हाज़िर होते हैं न किसी शंका का समाधान होता है... हे जयादेवी ! मैं भी जानता हूँ कि वर्तमान
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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