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________________ लघु शांति स्तव सूत्र ११७ अथ (सदा) रक्ष रक्ष - (हे देवी !) आप अब सदा रक्षा करें, रक्षा करें । रक्षा का अर्थ है सलामती । जीवन आदि की सुरक्षा। कर्म के उदय से ऊपर बताए हुए किसी भी उपद्रव के उत्पन्न होने पर मनुष्य भयभीत बनता है, अपनी शारीरिक और मानसिक शक्ति का उपयोग करके वह भय उत्पन्न करनेवाले उपद्रवों को दूर करने का प्रयत्न करता है; ऐसे भय का निवारण स्वयं से सम्भव न होने पर साधक किसी दैवी शक्ति की सहायता लेकर भय दूर करने का यत्न करता है। इस स्तव की रचना हुई तब ऐसा ही एक प्रसंग बना था। पूरी तक्षशिला नगरी व्यंतर के उपद्रव से भयभीत हो गई थी । मारी का रोग इस हद तक फैल गया था कि सबकी समाधि दाव पर थी और संघ का हित संकट में था। ऐसे समय संघ के हितचिंतक स्तवनकार परम पूज्य मानदेवसूरीश्वरजी महाराज ने जयादेवी को संबोधित कर कहा, _“कर्म के उदय से तक्षशिला नगरी आज रोग से ग्रस्त है। व्यंतर के उपद्रव से वहाँ के श्रावकों का जीवन संकट में हैं। संघ की आराधना आज विघ्नों के बादलों से घिरी है । हे देवी ! इस संघ का रक्षण करना आपका कर्तव्य है । आप शीघ्र तक्षशिला नगरी पहुँचकर व्यंतर के उपद्रव को शांत करें ! भयभीत हुए संघ को आप शीघ्र निर्भीक करें ! किसी भी प्रकार से आप संघ का रक्षण करें ! संघ की सुरक्षा की यह ज़िम्मेदारी आप यथायोग्य पूर्ण करें !" इसी प्रकार अब श्री विजयादेवी को विविध मंत्राक्षरों से गर्भित प्रेरणा करते हुए कहते हैं : 41. जो कि यह प्रयोग आज्ञार्थ है, परन्तु यह विध्यर्थ के अर्थ में ही प्रयोग किए गए हैं ।
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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