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________________ ११६ सूत्र संवेदना-५ विषधर भय : साँप वगैरह ज़हरी प्राणियों का भय । ग्रह भय : गोचर में अशुभ ग्रहों के कारण उत्पन्न होनेवाला भय। राज भय : क्रूर स्वभाववाले, दंड के लिए सजा करनेवाले, स्वभाव से ही लोभी ऐसे राजा या शासक द्वारा अनेक कारणों से उत्पन्न होनेवाला भय। रोग भय : मारी, मरकी, कोढ़, टी.बी, भगंदर, केन्सर आदि जानलेवा बिमारियों से पैदा होनेवाला भय। रण भय : लड़ाई या युद्ध का भय। राक्षस-रिपुगण-मारी-चौरेति-श्वापदादिभ्यः (रक्ष) - राक्षस, शत्रु समूह, महामारी, चोर, ईति, जंगली पशुओं से (हे देवी ! हमारी रक्षा करें।) राक्षस : अधोलोक में रहनेवाले व्यंतर देवों की एक जाति, जो मनुष्य के खून-माँस से संतुष्ट होती हैं। रिपुगण : शत्रुओं का समूह महामारी : मरकी, मारी आदि प्लेग जैसे जानलेवा रोग - epidemic चोरी : दूसरों का धन लूटनेवाले चोर, लुटेरे, आतंकवादी ईति : धान्य वगैरह की हानि करनेवाले चूहे, टिड्डियाँ, तोते वगैरह प्राणियों का अति विशाल समूह। श्वापद : बाघ, सिंह, चित्ता, रिछ, वगैरह जंगली पशु, जिनके पैर कुत्ते की तरह नाखूनवाले हैं। ___ इन सभी से जो उपद्रव होते हैं उससे और आदि पद से भूतपिशाच-शाकिनी-डाकिनी के उपद्रवों से रक्षा करने के लिए भी देवी से विनती की गई है।
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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