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लघु शांति स्तव सूत्र अथ रक्ष रक्ष सुशिवं कुरु कुरु शान्तिं च कुरु कुरु सदेति। तुष्टिं कुरु कुरु पुष्टि, कुरु कुरु स्वस्तिं च कुरु कुरु त्वम्।।१३।। अन्वयः
अथ सलिलानल-विष-विषधर -दुष्टग्रह-राज-रोग-रणभयतः । राक्षस-रिपुगण-मारी-चौरेति-श्वापदादिभ्यः त्वं सदा रक्ष रक्ष, सुशिवं कुरु कुरु, शान्तिं च कुरु कुरु, इति तुष्टिं कुरु कुरु, पुष्टि कुरु कुरु, स्वस्तिं, च कुरु कुरु ।।१२-१३।। गाथार्थ :
(हे देवी !) आप अब पानी, अग्नि, ज़हर, विषधर-साँप, दुष्ट ग्रह, राजा, रोग और युद्ध के भय से तथा राक्षस, शत्रुसमूह, मरकी, चोर, सात प्रकार की ईति, जंगली-शिकारी जानवर आदि से सदा हमारी रक्षा करें, रक्षा करें, हमारा कल्याण करें, कल्याण करें, हमारे उपद्रव शांत करें, शांत करें, तुष्टि करें, तुष्टि करें; पुष्टि करें, पुष्टि करें तथा हमारा क्षेम-कुशल करें, क्षेम-कुशल-करें। विशेषार्थ :
(अथ) सलिलानल-विष-विषधर-दुष्टग्रह-राज-रोग-रण-भयतः (रक्ष)- (हे देवी ! आप अब) पानी, अग्नि, ज़हर, साँप, दुष्ट ग्रह, राजा, रोग और लड़ाई के भय से, (हमारा रक्षण करें।)
जल भय : अतिवृष्टि, नदी में बाढ़, नदी का तूफान, सुनामी वगैरह जल से होनेवाला भय ।
अग्नि भय : उल्कापात होना, एकाएक आग फटना, या किसी भी रूप के अग्नि से उत्पन्न हुआ डर ।।
विष भय : स्थावर या जंगम दोनों प्रकार के ज़हर से होनेवाला भय।