SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लघु शांति स्तव सूत्र ११३ संपत्ति अर्थात् हाट, हवेली, बाग, बगीचा, नौकर, चाकर, राच-रचिला रूप ऐश्वर्य । जयादेवी जैनशासन के प्रति श्रद्धालु जीवों को ऐसा ऐश्वर्य देती हैं। जहाँ भी जाए वहाँ होनेवाली प्रशंसा अथवा दान-पुण्य से होनेवाली प्रशंसा को कीर्ति कहते हैं और चारों दिशाओं में फैली हुई प्रशंसा अथवा पराक्रम से प्राप्त नामना को यश कहते हैं । देवी ऐसी कीर्ति और यश को बढ़ानेवाली हैं। जगति जयदेवि विजयस्व0 - जगत् में हे जयादेवी! आप जय को प्राप्त करें। 40. देवी की शक्ति और विभूतियों से जिस जनसमूह पर उपकार हुआ है उस समूह को जगत् कहें तो गाथा नं. ८ से ११ की स्तुति में जगत् के रक्षण के लिए जगन्मंगलकवच' समाया हुआ है। उसमें 'जगत्' की जनता के उपलक्षण से सूचित देह के अंग और उसके आधार पर देवी के शुभ कृत्य को नीचे दिए गए कोष्टक से समझना चाहिए । जगत् मंगल कवच की रचना संख्या जगत् की जनता के प्रकार | अंग | कृत्य । १ सकल संघ (चतुर्विध संघ) मस्तक भद्र, कल्याण और मंगल करना २ |साधु-साध्वी रूप श्रमण समुदाय वदन शिव, सुतुष्टि और पुष्टि करना हृदय सिद्धि, शांति और परम प्रमोद देना सत्त्वशाली आराधक हाथ अभय और स्वस्ति देना (सकामभक्तिवाला) ५ |जंतु आराधक (अति सकाम पैर शुभ कामना भक्तिवाला) ६ सम्यग्दृष्टि जीव कंठ धृति, रति, मति और बुद्धि देना (निष्काम भक्तिवाला) |जिनशासन निरत और शांतिनाथ | भगवान को नमन करती सामान्य देह श्री, संपत्ति, कीर्ति, यश बढ़ाना जनता (जो जिनशासन के प्रति श्रद्धा और सद्भाव रखते हैं ऐसे अपुनर्बंधक जीव) प्रबोध टीका में इस प्रकार 'जगत् मंगल कवच' की रचना की गई है । उसका अन्य आधार देखने में नहीं आया है। सकल भव्य आराधक भव्य आराधको । सबम भकियाले आरामले
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy