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________________ ११२ सूत्र संवेदना-५ शान्तिनतानां च जनतानाम् - शांतिनाथ भगवान के प्रति झुके हुए लोग अर्थात् जिनको जिनमत के प्रति या मोक्षमार्ग के प्रति अभी तक रुचि नहीं हुई है, परन्तु शांतिनाथ प्रभु के अचिंत्य प्रभाव से जो प्रभावित हो गए हैं, प्रभु की भक्ति से मिलनेवाले भौतिक फल देखकर जो प्रभावित हुए हैं और जो शांतिनाथ भगवान की वंदना, पूजा, स्तवना या नमस्कार करते हैं, ऐसे मुग्ध जीवों को यहाँ जनता के रूप में ग्रहण करना चाहिए। शांतिनाथ भगवान के प्रति देवी की भक्ति और श्रद्धा इतनी विशिष्ट है कि किसी भी कारण से उनकी भक्ति करनेवालों का वे भला करती हैं। आचार्य भगवंत भी ऐसे जीवों का भला करने के लिए देवी को प्रेरणा देते हैं क्योंकि वे समझते हैं कि मुग्ध कक्षा के जीव इस प्रकार से कभी मार्ग को प्राप्त कर वास्तविक सुख प्राप्त कर सकते हैं। यही उनकी दूरवर्ती योग्यता धारण करनेवाले जीवों के प्रति करुणा है । श्रीसम्पत्कीर्तियशोवर्धनि39 - लक्ष्मी, समृद्धि, कीर्ति और यश की वृद्धि करनेवाली (हे देवी)! ___ हे 'देवी ! जैनशासन के प्रति तीव्र श्रद्धा धारण करनेवाले और मात्र शांतिनाथ भगवान को नमस्कार करनेवाले जीवों को आप लक्ष्मी आदि प्रदान करती हैं ।" ___ श्री अर्थात् लक्ष्मी अथवा सौंदर्य । जयादेवी जानती हैं कि जैनशासन के प्रति जिनको रुचि प्रगट हुई है, ऐसे अपुनर्बंधक जीव या मंद मिथ्यात्वी को जैनशासन के प्रति रुचि उत्पन्न करवाने का साधन लक्ष्मी, संपत्ति, समृद्धि, यश, कीर्ति आदि हैं । इसलिए वे हीरे, मोती आदि स्वरूप लक्ष्मी से लोगों का धन भंडार भर देती हैं और शृंगार आदि के साधनों द्वारा उन जीवों के शरीर की शोभा और सौंदर्य भी बढ़ाती हैं। 39. श्री लक्ष्मीः, सम्पद् ऋद्धिविस्तारः, कीर्तिः ख्यातिर्यशः सर्वदिग्गामि, यत: “दानपुण्यभवा कीर्तिः पराक्रमोद्भवं यशः एकदिग्गामिनिकीर्तिः सर्वदिग्गामिकं यशः" ततः श्रीसम्पत्कीर्तियशांसि वर्द्धयतीति श्रीसम्पत्कीर्तियशोवर्द्धनी तस्याः सम्बोधने
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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