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________________ लघु शांति स्तव सूत्र १११ अन्वयः जिनशासननिरतानां शान्तिनतानां च जनतानाम् । श्रीसम्पत्कीर्तियशोवर्द्धनि (हे) जयदेवि ! जगति विजयस्व ।।११।। गाथार्थ : जैनशासन के प्रति समर्पित और श्री शांतिनाथ भगवान को नमन करनेवाले लोगों की लक्ष्मी, समृद्धि, कीर्ति और यश बढ़ानेवाली हे जयादेवी ! आप जगत् में विजय प्राप्त करें । विशेषार्थ : जिनशासननिरतानां शान्तिनतानां च जनतानाम्38 - जैनशासन में अत्यंत रक्त और शांतिनाथ भगवान के प्रति झुके हुए लोगों को। जिनशासननिरतानाम् - राग, द्वेष आदि दोषों से रहित सर्वज्ञसर्वदर्शी जिनेश्वर भगवंत ने, संसारी जीवों के कल्याण के लिए जो मार्ग स्थापित किया है, उसे जिनशासन कहते हैं। यह शासन जिन्हें अत्यंत प्रिय है और तदनुसार जीवन जीने का प्रयत्न कर रहे हैं, उन्हें जिनशासननिरत कहते हैं। सामान्यतया जिन्होंने अपना समग्र जीवन जिनशासन को समर्पित किया हो, वैसी संयमी आत्माएँ अथवा जिनकी जिनमत के प्रति तीव्र रुचि हो ऐसे सम्यग्दृष्टि जीव जिनशासन में निरत कहलाते हैं। इन दोनों का स्पष्ट उल्लेख पूर्व गाथाओं से हो जाने से इस पद में किन लोगो की बात की गई यह प्रश्न उठता है। विचार करते हुए ऐसा लगता है कि, मिथ्यात्व की मंदता के कारण जिनको जिनशासन के प्रति रुचि प्रकट हुई है, तथा अपनी समझ और शक्ति के अनुसार जो जिनमत के आधार पर जीवन जीने का प्रयत्न करते हैं, ऐसे अपुनर्बंधक कोटि के जीवों को इस पद से ग्रहण करना चाहिए । इसके बावजूद इस विषय में विशेषज्ञ सोचें। ऐसे जिनशासन में निरत जीवों का भी देवी कल्याण करती हैं। 38. जगत् मंगल कवच की रचना में सामान्य जनता को सकल देह समझकर रक्षा मांगी गई है ।
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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