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वंदित्तु सूत्र
अवतरणिका : . दर्शनाचार विषयक बाह्य अतिचार बताए। अब अंतरंग अतिचारों को बताते हुए कहते हैं -
गाथा:
संका कंख विगिच्छा पसंस तह संथवो कुलिंगीसु । सम्मत्तस्सइआरे पडिक्कमे देसि सव्वं ।।६।। अन्वय सहित संस्कृत छाया : शङ्का काङ्क्षा विचिकित्सा, कुलिङ्गिषु प्रशंसा तथा संस्तवः।
सम्यक्त्वस्य अतिचारान्, दैवसिकं सर्वं प्रतिक्रामामि॥६॥ गाथार्थ :
तत्त्व के विषय में शंका करना , मिथ्यात्वियों के चमत्कार देखकर उनके मत की अभिलाषा करना , धर्म के विषय में फल का सन्देह करना , कुलिंगीओं की प्रशंसा करना तथा कुलिंगीयों का परिचय करना : सम्यक्त्व संबंधी इन पाँच अतिचारों में से दिन भर में जिन अतिचारों का सेवन हुआ हो उन सबका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। विशेषार्थ :
सम्यग्दर्शन' सर्व सुख का मूल है । इस गुण के अभाव में ही जगत के जीव दुःखी होते हैं । इसकी प्राप्ति से ही जीव के सुख का प्रारंभ होता हैं । इसलिए इस गुण को प्रकट करने, टिकाने या दृढ करने के लिए, जैसे मिथ्यात्वी के स्थानों में आगमन आदि बाह्य अतिचारों से बचना चाहिए, वैसे इस गाथा में बताए गए शंका आदि अतिचारों से भी सावधानीपूर्वक दूर रहना चाहिए ।
संका : शंका-संशय, भगवान के वचन में शंकित होना। सर्वज्ञ, वीतराग, परमात्मा द्वारा कहे हुए जीवादि नव तत्त्व, उनके स्वरूप, उनके भेद-प्रभेद, उनके स्वभाव-प्रभाव, उनके प्रमाण, अवस्थान आदि किसी 1. सम्यक्त्व की विशेष समझ के लिए सूत्र स. भा. १ नमुत्थुणं सूत्र के अभयदयाणं आदि पाँच
पद भी देखिए.।