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अणाभोगे - उपयोग न रहने के कारण ।
'मैंने सम्यक्त्व व्रत का स्वीकार किया है, इसलिए इस व्रत को टिकाने या श्रद्धाभाव को दृढ़ रखने के लिए मुझे मिथ्यामतियों के स्थान पर नहीं जाना चाहिए' ऐसा उपयोग नहीं रहने के कारण मिथ्यादृष्टि के महोत्सवों में या मन्दिरों में आगमणे निग्गमणे अर्थात् आना-जाना हुआ हो, ठाणे अर्थात् वहाँ खड़े रहना पड़ा हो या चंकमणे अर्थात् उस स्थान में यहाँ-वहाँ घुमने का हुआ हो; इन सब कारणों से मेरे व्रत में जो मलिनता हुई हो, मेरी श्रद्धा थोड़ी भी डिगी हो, उन सब दोषों का मैं प्रतिक्रमण करता हूँ।
अभिओगे अ - दबाव से ।
राजा आदि अधिकार प्राप्त लोगों के दबाव या रोब को अभियोग कहते हैं ।
स्वयं सम्यक्त्व व्रत का स्वीकार किया है ऐसा पूर्ण ख्याल होते हुए भी, अभियोग के कारण मिथ्यामतिओं के स्थान में जाना-आना पड़े, रहना पडे या वहाँ घूमना पडे तो वह भी सम्यक्त्व व्रत में अतिचार रूप है। अभियोग के निम्नोक्त छः प्रकार हैं।
१. राजाभियोग
२. गणाभियोग
३. बलाभियोग
४. देवाभियोग
५. गुरु- अभियोग
६. वृत्तिकांताराभियोग
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वंदित्तु सूत्र
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राजा का दबाव
लोक-समूह का दबाव या कुटुम्ब का आग्रह
अधिक बलवान का दबाव
देवताओं का दबाव
माता-पितादि बुजुर्गों का दबाव
जंगल आदि मे कोई प्राणांत कष्ट आये, अथवा आजीविका के निर्वाह करने में भारी मुश्किल आये, ऐसे 'विकट प्रसंग' |
ऐसे किसी भी दबाव से मिथ्यात्वियों के स्थान में जाने-आने इत्यादि से इस व्रत में कोई दोष लगा हो तो उन सब दोषों का मैं प्रतिक्रमण करता हूँ ।
निओगे - कर्त्तव्य से ।
स्वयं जिस राजकीय, सामाजिक या नौकरी-धंधे के पद पर आरूढ़ हो, उस पद के फर्ज या अधिकार को नियोग कहते हैं। उससे मिथ्यादृष्टियों के स्थानों में