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________________ दर्शनाचार अवतरणिका : ज्ञानाचार के अतिचार बताए, अब दर्शनाचार में जो बाह्य तीन कारणों से अतिचारों का सेवन हुआ हो, उसका प्रतिक्रमण करने की इच्छा से कहते हैं: गाथा : आगमणे निग्गमणे, ठाणे चंकमणे अणाभोगे। अभिओगे अ निओगे, पडिक्कमे देसि सव्व।।५।। अन्वय सहित संस्कृत छाया : अनाभोगे अभियोगे नियोगे च आगमने निर्गमने। स्थाने चङ्क्रमणे दैवसिकं सर्वम् प्रतिक्रामामि ।। गाथार्थ : अनाभोग से = नहीं सोचने के कारण; ‘सम्यक्त्व व्रत का मैंने स्वीकार किया है' वैसा उपयोग नहीं रहने से; अभियोग से = राजा आदि के दबाव से; अथवा नियोग से = अधिकार के वश होकर अथवा फर्ज से; (मिथ्यादृष्टियों के महोत्सव में अथवा उनके मंदिर में) आने में, जाने में, उनके स्थान में खड़े रहने में अथवा यहाँ-वहाँ घूमने में, दिवस दौरान सम्यग्दर्शन के विषय में जिस किसी भी दोष का सेवन हुआ हो, उन सबका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ।
SR No.006127
Book TitleSutra Samvedana Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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