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ज्ञानाचार गाथा-४
रागेण व दोसेण व तं निंदे तं च गरिहामि - (अप्रशस्त) राग से अथवा द्वेष से (जो कर्म बांधा हो) उसकी मैं निन्दा करता हूँ, गर्दा करता हूँ।
राग अर्थात् आसक्ति एवं द्वेष अर्थात् अरूचि । निश्चय नय से 'संसारवर्ती कोई भी पदार्थ अच्छा भी नहीं है एवं बुरा भी नहीं है', इस प्रकार के शास्त्र वचनों को समझने वाला श्रावक, संसार में कहीं भी राग-द्वेष न हो जाए इसके लिए सतत सावधान रहता है। फिर भी बलवान चारित्र मोहनीय कर्म को परवश जीव निमित्त मिलने पर राग में रंग जाता है एवं द्वेष के अधीन बनता है और नए नए कर्म को बांधकर दु:खी होता है। अप्रशस्त इन्द्रियाँ, कषाय एवं योग जैसे ज्ञान की आशातना स्वरूप थे, वैसे अप्रशस्त राग-द्वेष भी ज्ञान के दुरूपयोग रूप होने के कारण, उन्हें टीकाकार ने ज्ञानाचार की मलिनता स्वरूप ही बताया है।
जिज्ञासा : 'नाणम्मि' सूत्र में काल-विनय आदि ज्ञान के आचारों का वर्णन है। उनका परिशीलन करते हुए यह समझ में आता है कि इन आचारों का पालन न करना ही अतिचार है। इस गाथा में काल-विनय आदि का ध्यान न रखने के अतिचार न बताते हुए अप्रशस्त इन्द्रिय, रागादि कषाय एवं योग को ज्ञान का अतिचार बताया, उसका क्या कारण है ?
तृप्ति : नाणम्मि' सूत्र में श्रुतज्ञान की प्राप्ति तथा वृद्धि के साधनों को ज्ञानाचार कहा है एवं उनको न पालना उसे अतिचार कहा है । जब कि यहाँ प्राप्त हुई ज्ञान शक्ति का शुभ मार्ग में उपयोग नहीं करना या विपरीत तरीके से अप्रशस्त कार्यों में उपयोग करना, उसको ज्ञान का अतिचार कहकर, 'ज्ञानावरणीय कर्मबंध' का कारण बताया है। कहा है कि जो ज्ञान होने पर भी रागादि में प्रवर्तता है उसका ज्ञान वास्तव में ज्ञान ही नहीं होता लेकिन विपर्यास होता है । ऐसा विपरीत ज्ञान ही व्रत-नियम की मर्यादा का उल्लंघन करवाकर कर्मबन्ध का कारण बनता है । इस अपेक्षा से ही जो रागादि ज्ञान को मलिन करते हैं वैसे अप्रशस्त राग और द्वेष को ज्ञान के अतिचार रूप बताया हैं। 4. निश्चयात्किञ्चिदिष्टं वाऽनिष्टं वा नैव विद्यते ।।९-३।। 5. तज्ज्ञानमेव न भवति, यस्मिन्नुदिते विभाति रागगणः । तमसः कुतोऽस्ति शक्तिर्दिनकरकिरणाग्रतः स्थातुम्।। ___ - वन्दारूवृत्ति जिनका उदय होने पर भी रागादिक का समूह मर्यादा के बाहर नियम का उल्लंघन करके आगे चला जाए वह ज्ञान ज्ञान ही नहीं है। ज्ञानरूप सूर्य की किरणों के आगे अतिचार रूप अंधकार को रहने की शक्ति ही कहां से हो सकती है !
-अध्यात्मसार