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________________ सर्व अतिचारों का प्रतिक्रमण गाथा-२ अतिचार ऐसे कुल व्रत विषयक ८५ अतिचार इस सूत्र में बताये हैं। इसके उपरांत पंचाचार के ३९ अतिचार सहित १२४ अतिचारों का इस सूत्र के माध्यम से प्रतिक्रमण करना है। अब पंचाचार विषयक अतिचार बताते हैं - नाणे तह दंसणे चरिते अ सुहुमो अ बायरो वा - तथा ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चरित्राचार एवं 'अ' कार से तपाचार एवं वीर्याचार के आचार के विषय में सूक्ष्म अथवा बादर (जो अतिचार लगा हो)। ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप एवं वीर्य ये आत्मा के गुण हैं और उनको प्रकट करनेवाले ज्ञानाचारादि पांच आचार (पंचाचार) हैं जिनका वर्णन नाणम्मि सूत्र में किया गया है। उन पंचाचारों का पालन न करना या विपरीत पालन करना, वही पंचाचार संबंधी अतिचार हैं। उसमें ज्ञानाचार के ८, दर्शनाचार के ८, चारित्राचार के ८, तपाचार के १२ एवं वीर्याचार के ३ ऐसे पंचाचार के कुल ३९ अतिचार हैं। बारह व्रत विषयक ८५ अतिचार एवं पंचाचार विषयक ये ३९ अतिचार मिलाकर कुल १२४ अतिचारों का इस सूत्र द्वारा प्रतिक्रमण करना है। व्रत विषयक सभी अतिचारों का वर्णन इस सूत्र में आगे किया गया है, परंतु पंचाचार विषयक अतिचारों का वर्णन स्पष्ट रूप से इस सूत्र में नहीं है । यहाँ पंचाचार के अतिचारों का सामान्य उल्लेख है और पंचाचार की विशेष बातें नाणम्मि सूत्र में हैं। स्थूल दृष्टि से देखें तो ये १२४ अतिचार हैं, परंतु सूक्ष्म दृष्टि से देखें तो व्रत या आचार विषयक छोटे बड़े अनेक अतिचार हैं। अतिचार के प्रकार : व्रतादि के विषय में अतिचार दो प्रकार के होते हैं - सूक्ष्म एवं बादर। उसमें सूक्ष्म अतिचार उसे कहते हैं कि जिसे सामान्य जन अतिचार के रूप में पहचान न सकें । जैसे कि व्रत स्वीकार के बाद उसे याद न रखना, व्रत किसलिए लिया हैं, उससे मुझे क्या फल प्राप्त करना हैं, ऐसा न सोचना, व्रत में विघ्न करने वाले दोषों के प्रति घृणा या तिरस्कार का भाव न होना, व्रत पालन के लिए उत्साह, वीर्य का 2 सुहुमो वा अनुपलक्ष्यः, बायरो वा व्यक्तः । - वन्दारूवृत्ति
SR No.006127
Book TitleSutra Samvedana Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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