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वंदित्तु सूत्र
धम्मायरिए अ - धर्माचार्यों को (वंदन करके)।
अरिहंत भगवान की अनुपस्थिति में जो शासन की बागडोर वहन करते हैं, श्रुत और चारित्र धर्म का पालन करते हैं, सूत्र के रहस्यपूर्ण अर्थ की देशना द्वारा जो चतुर्विध संघ को धर्म का दान करते हैं एवं अपने पंचाचार के पालन द्वारा जो अनेक जीवों को धर्म की ओर आकर्षित करते हैं, ऐसे धर्माचार्यों को इस पद द्वारा वंदन किया गया है। इसके उपरांत 'अ' शब्द से उपाध्याय भगवंत जो विनय के भंडार हैं, आगम शास्त्रों के ज्ञाता हैं एवं शिष्यों को सूत्र एवं अर्थ प्रदान करते हैं उनको वंदन किया गया है।
सव्वसाहू अ - तथा सर्व साधुओं को (वदंन करके)। मोक्ष मार्ग की जो विविध प्रकार से उत्तम साधना कर रहे हैं ऐसे जिनकल्पिक, स्थविरकल्पिक आदि सर्व प्रकार के साधु भगवंतों को इस पद से वंदन किया गया है।
जिज्ञासा : यहाँ मंगलाचरण में पंच परमेष्ठी को ही क्यों वंदन किया है ?
तृप्ति : साधना का लक्ष्य एक ही होता है - दोषों से मुक्त होकर गुणों को प्राप्त करना। प्रतिक्रमण की साधना का भी यही उद्देश्य है। इसलिए प्रतिक्रमण सूत्र के प्रारंभ में सर्व दोषों से रहित एवं सर्वगुण संपन्न अरिहंत और सिद्ध भगवंत को वंदन करके मंगलाचरण किया जाता हैं। इस तरह वंदन करने से अरिहंत आदि के प्रति बहुमान भाव उत्पन्न होता है। यह बहुमान दोष के लगाव से बंधे कर्मों को नष्ट करता है, जिससे साधक शीघ्र ही दोषमुक्त बन सकता हैं। उसी तरह दोष मुक्ति के लिए विशेष यत्न करते हुए आचार्य भगवंतों, उपाध्याय भगवंतों एवं साधु भगवंतों को वंदन करते वक्त साधक को सहज ऐसा भाव होता हैं कि, ये महात्मा भी मेरे जैसे ही हैं, फिर भी दोषों से मुक्त होने के लिए ये कितना अच्छा प्रयत्न कर रहे हैं। मैं क्यों ऐसा पुरुषार्थ नहीं कर पाता ?' इस तरह सोचने से साधक में दोष नाश का सत्त्व प्रकट होता है। इस कारण से ही यहाँ अन्य प्रकार के मंगलाचरण न करते हुए पंच परमेष्ठी को नमस्कार करने स्वरूप ही मंगल किया है। 6. अरिहंत, सिद्ध आदि पंच परमेष्ठी का विशेष स्वरूप सूत्र सं. १ सूत्र - १ में देखिए