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मंगलाचरण गाथा-१
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कारण अपने मन, वचन एवं काया की सर्व प्रवृत्तियाँ परमात्मा के वचन अनुसार ही करना, वह श्रेष्ठ वंदना हैं। ऐसी श्रेष्ठ वंदना को ही लक्ष्य बनाकर साधक 'वंदित्तु' शब्द द्वारा अपनी शक्ति एवं भूमिका अनुसार वंदन करता है।
अब किसको वंदन करके मंगलाचरण सम्पन्न किया जा रहा है, यह बताते हैं: सव्वसिद्धे - अरिहंत तथा सिद्ध भगवंतों को (वंदन करके)। 'सव्वसिद्धे' का अर्थ है सर्व सिद्ध भगवंतों अर्थात् तीर्थ सिद्ध, अतीर्थ सिद्ध आदि पंद्रह प्रकार के सिद्ध भगवंत । सिद्ध होने से पूर्व की अवस्था को लक्ष्य में रखकर शास्त्र में सिद्ध भगवंतों के पन्द्रह भेद बताए हैं। उन सब भेदों में तीर्थंकर के रूप में मोक्ष में जाने वाले अरिहंत भगवंत का भी समावेश हो जाता हैं। इस कारण सव्वसिद्धे कहने से अरिहंत एवं सिद्ध भगवंत दोनो को वंदन किया जाता हैं।
सव्व शब्द प्राकृत हैं। इसकी संस्कृत छाया जैसे सर्व होती है वैसे सार्वा भी होती है। पहले सर्व के अनुसार अर्थ किया हैं, अब सार्वा के अनुसार अर्थ करें तो सावी का अर्थ होता हैं जो सर्व वस्तुओं को जानता हैं अथवा 'सर्व' का हित करता हैं वह सार्वा । इस तरह सव्व शब्द से सर्व प्राणिओं का हित करने की जिनमें भावना होती है एवं इस भावना के परिपाक से ही जिन्होंने संसार सागर को तैरने के लिए धर्म तीर्थ रूपी श्रेष्ठ जहाज की स्थापना की हो, उन अरिहंत भगवंतों को वंदन होता हैं । एवं 'सिद्धे' शब्द द्वारा सिद्ध भगवंतों को वंदन होता हैं। इस तरह 'सव्वसिद्धे' पद द्वारा अरिहंत एवं सिद्ध भगवंतों को वंदना करने में आई हैं।
4. सिद्ध के १५ भेद जिण अजिण तित्थऽतित्था गिहि अन्न सलिंग थी नर नपुंसा। पत्तेय सयंबुद्धा, बुद्धबोहिय इक्कणिक्का य।।५५ ।।
- नवतत्त्व जिनसिद्ध, अजिनसिद्ध, तीर्थसिद्ध, अतीर्थसिद्ध, गृहस्थलिंङ्गसिद्ध, अन्यलिङ्गसिद्ध, स्वलिङ्गसिद्ध, स्त्रीसिद्ध, पुरुषसिद्ध, नपुंसकसिद्ध, प्रत्येकबुद्ध सिद्ध, स्वयंबुद्धसिद्ध,
बुद्धबोधितसिद्ध, एकसिद्ध, अनेकसिद्ध। 5. सर्व वस्तु विन्दति सर्वेभ्यो हिता वेति सार्वाः तीर्थकृतः, - इस तरीके से
सव्व शब्द का सार्वा अर्थ करनेमें आए तो उसके द्वारा अरिहंत अर्थ ग्रहण कर सकते हैं अथवा सव्व शब्द से सब सिद्ध भगवंत ऐसा अर्थ कर सकते हैं। जिसमें अरिहंतों का समावेश हो जाता है।
- वन्दारूवृत्ति