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'वंदित्तु सूत्र' श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र
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सूत्र परिचय :
इस सूत्र के माध्यम से श्रावकगण पाप से वापस लौटने की क्रिया करते हैं। इस कारण इसे 'श्राद्ध प्रतिक्रमण सूत्र', 'श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र' अथवा 'समणोपासग पडिक्कमण सूत्त' भी कहते हैं । इस सूत्र की हर एक गाथा एवं प्रत्येक पद श्रावक को अपना जीवन किस प्रकार से जीना, आत्मा की अशुद्धिओं का त्याग करके कैसे शुद्ध बनना, पाप प्रवृत्ति से लौटकर पुण्य के मार्ग पर किस तरीके से आगे बढ़ना, अनियंत्रित जीवन को किस तरह नियंत्रित बनाना एवं आत्मा की विरूप अवस्था को दूर करके स्वरूप में कैसे स्थिर रहना चाहिए; उसका मार्ग बताता है ।
इस जगत में ऐसे संख्यातीत पदार्थ और भाव हैं जो आत्मा को पाप के मार्ग पर खींच सकते हैं। शास्त्र के मर्म को समझने वाले महासात्त्विक श्रमण भगवंत ही इन सब भावों का त्याग कर सकते हैं। सम्यग् दर्शन को धारण करने वाले श्रावक को भी इन सब पापों का त्याग करने की भावना होती ही है, परंतु वर्तमान में वे इन पापों का सर्वथा त्याग नहीं कर सकते। फिर भी विवेकी श्रावक जिनका त्याग कर सकते हैं, वैसे पदार्थ भी इस संसार में बहुत हैं । सर्वज्ञ भगवान ने उन सब पदार्थों का संक्षेप करके बारह विभागों में बाँटकर, उनके त्याग स्वरूप श्रावक जीवन के उचित बारह व्रत बताएं हैं। इन बारह व्रतों के या उनमें से कुछ न्यून व्रतों के स्वीकार को देशविरति या देशसंयम कहते हैं और अहितकारी सब पापों के त्याग को सर्वविरति या सर्वसंयम कहते हैं ।