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________________ भूमिका को रोकती है। ‘श्राद्ध विधि' आदि ग्रंथ में तो यहाँ तक कहा है कि अगर बारह मील तक भी गुरु निश्रा मिलती हो तो गुरु की हाजरी में ही प्रतिक्रमण करना चाहिए और साक्षात् गुरु भगवंत की उपस्थिति न हो तो भी पुस्तकादि ज्ञान, दर्शन, चारित्र के उपकरणों में गुरु भगवंत की स्थापना करके मानो साक्षात् गुरु भगवंत उपस्थित हैं, ऐसे भावपूर्वक प्रतिक्रमण करना चाहिए। - प्रतिक्रमण की सफलता के लिए इन सब बातों को ध्यान में रखने के अलावा प्रतिक्रमण की प्रत्येक क्रिया करते हुए कौनसी मुद्रा में काया को स्थिर रखना चाहिए, क्रिया काल में प्रयोग होने वाले सूत्रों का शुद्ध उच्चारण किस तरह से करना चाहिए, उनके द्वारा भाव तक कैसे पहुँचना चाहिए एवं उस समय मन को कौन से ध्यान में स्थिर करना चाहिए ? इन सब बातों की जानकारी प्राप्त करके, उसके लिए खास प्रयत्न करना चाहिए, तो ही भाव पूर्ण प्रतिक्रमण करके आत्मशुद्धि की प्राप्ति हो सकती है। इस भाव तक पहुँचने के लिए बहुत से सूत्रों के अर्थ सूत्र संवेदना भा. १-२-३ (गुजराती आवृत्ति) में बताए हैं। दो प्रतिक्रमण के बाकी के सूत्रों के अर्थ भाग-५ में प्रकाशनाधीन है। अनेक जिज्ञासुओं के आग्रह के कारण श्रावक प्रतिक्रमण में सर्वोच्च स्थान पर रहा हुआ वंदित्तु-सूत्र' अब हिन्दी भाषा में प्रस्तुत हो रहा है। इसको मात्र एक बार पढ़कर नहीं परंतु पुनः-पुनः इसका चिन्तन एवं मनन करके, इसके भावों को हृदय में स्थिर करके जो प्रतिक्रमण करेंगे, वे अवश्य इस सूत्र द्वारा आत्मशुद्धि को प्राप्त कर पाएंगे। हर कोई इस प्रकार आत्मशुद्धि की प्राप्ति द्वारा शीघ्रातिशीघ्र परमपद को प्राप्त करे यही शुभाभिलाषा।
SR No.006127
Book TitleSutra Samvedana Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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