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________________ छठा व्रत गाथा-१९ १४९ अहे अ - अधोदिशा में प्रमाण का अतिक्रमण। तहखानों, गुफाओं, सुरंगों, समुद्र वगैरह में नीचे जाने का जो प्रमाण निश्चित किया हो, उसका उल्लंघन करने से या भूल जाने से दूसरा अतिचार लगता हैं। तिरिअं च - तिर्की दिशा में प्रमाण का अतिक्रमण। पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण : इन चार दिशाओं में एवं ईशान, अग्नि, नैऋत्य और वायव्य : इन चार विदिशाओं में जाने की जो मर्यादा निश्चित की हो उस मर्यादा से अधिक गए हों तो इस व्रत विषयक तीसरा अतिचार लगता है। वुड्डी - प्रमाण की वृद्धि। दसों दिशाओं में आने-जाने के लिए प्रत्येक दिशा में सौ-सौ किलोमीटर की सीमा तक छूट रखकर इस व्रत का स्वीकार करने के बाद भी, कई बार, अचानक कोई आकस्मिक कार्य आने पर सबको मिलाकर एक ही दिशा में सौ किलोमीटर से अधिक जाना, यह चौथा अतिचार है। सइअंतरद्धा - प्रमाण भूल जाने से। दस में से किसी भी दिशा का जो प्रमाण निश्चित किया हो, वह व्याकुलता से, प्रमाद से या मतिविभ्रम से भूल जाने के कारण, निश्चित की हुई मर्यादा से बाहर जाना यह पाँचवाँ अतिचार है। जिज्ञासा : इस व्रत में पाँच अतिचार बताए हैं। इसके बदले ऊर्ध्व अधो एवं तिच्छी दिशा में प्रमाण से अधिक जाना-आना ऐसा एक ही अतिचार बताया होता तो? उत्तर : सोचने से लगता है कि व्रत पालन की विशेष सावधानी के लिए प्रत्येक दिशा के आवश्यकतानुसार अलग-अलग अतिचार बताए होंगे। इसके अलावा कोई उल्लेख देखने में नहीं आया। पढ़मम्मि गुणव्वए निंदे - प्रथम गुणव्रत में जो अतिचार लगे हों उनकी मैं निन्दा करता हूँ।
SR No.006127
Book TitleSutra Samvedana Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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