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वंदित्तु सूत्र
किसी भी श्रावक को कभी भी नहीं बोलना चाहिए। कन्या के उपलक्षण से वर संबंधी या अन्य किसी भी द्विपद संबंधी भी ऐसा झूठ नहीं बोलना चाहिए।
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२. गवालीक : गाय संबंधी झूठ नहीं बोलना ।
गाय के लेन-देन के अवसर पर, अपने स्वार्थ के लिए कम दूध देने वाली गाय को बहुत दूध देने वाली एवं बहुत दूध देने वाली गाय को कम दूध देने वाली कहना इत्यादि चतुष्पद संबंधी तमाम प्रकार का असत्य बोलना, वह दूसरा बड़ा झूठ है, जिसे श्रावक को नहीं बोलना चाहिए।
३. भूम्यलिक : भूमि संबंधी झूठ ।
स्वार्थ या लोभ के वश होकर अन्य की जगह को अपनी कहना एवं अपनी जगह को अन्य की कहना, उपजाऊ भूमि को बंजर कहना आदि भूमि संबंधी झूठ बोलना तीसरा बड़ा झूठ है। इन तीनों : झूठ के उपलक्षण से द्विपद (मनुष्य अर्थात् नौकर, चाकर आदि कोई भी मनुष्य या पक्षी आदि) संबंधी, चतुष्पद संबंधी एवं अपद (जर, जमीन, अलंकार संबंधी) झूठ नहीं बोलना ऐसी प्रतिज्ञा होती है ।
जिज्ञासा : यदि कन्या आदि शब्द से द्विपद, चतुष्पद एवं अपद समझना हो तो दुनिया के लगभग सभी पदार्थों का इसमें समावेश हो जाता है, फिर शास्त्रों में इन तीन शब्दों का ही प्रयोग क्यों किया हैं ?
तृप्ति : साधारणतः तो द्विपद, चतुष्पद एवं अपद में दुनिया के लगभग सभी पदार्थों का समावेश हो जाता हैं। इसलिए मुमकिन हो तो श्रावक को किसी भी वस्तु विषयक झूठ नहीं बोलना चाहिए; तो भी कन्या, गाय या ज़मीन संबंधी बोला गया झूठ लोक में भी अति गर्हणीय है, निन्दा और विशेष अप्रीति का कारण है, इसलिए श्रावक को ऐसा झूठ तो नहीं ही बोलना चाहिए। ऐसा बताने के लिए टीकाकार ने इन तीन शब्दों का प्रयोग किया होगा, ऐसा लगता है।
४. न्यासापहार : 'न्यास' अर्थात् अमानत, उसका 'अपहार' करना अर्थात्
उसका हरण करना ।
किसी ने हमें संभालने के लिए दी हो ऐसी वस्तु को अमानत कहते हैं । उसको अपनी मानकर रख लेना एवं अमानत रखने वाले को कहना कि 'तुमने मुझे कोई