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प्रथम व्रत
अवतरणिका:
अब चारित्र विषयक प्रथम अणुव्रत के अतिचारों का प्रतिक्रमण करते हुए कहते
गाथा:
पढमे अणुव्वयम्मी, थूलग-पाणाइवाय-विरईओ।
आयरियमप्पसत्थे, इत्थ पमायप्पसंगेणं ।।९।। अन्वय सहित संस्कृत छाया : प्रमादप्रसङ्गेन अप्रशस्ते अत्र प्रथमे अणुव्रते ।
स्थूलक-प्राणातिपात-विरतित: अतिचरितम् ।।९।। गाथार्थ :
प्रमाद के कारण अप्रशस्त भाव प्रवर्तते हुए, इस प्रथम अणुव्रत में स्थूल प्राणातिपात की विरति का उल्लंघन करने से, (दिन भर में) जो कोई विपरीत आचरण हुआ हो (उन सबका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ।)