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________________ वंदित्तु सूत्र - १०. देसावगासिक व्रत : छठे व्रत में एवं बाकी के व्रतों में रखी हुई छूटों को मर्यादित करना, ‘देसाव गासिक' नाम का दूसरा शिक्षाव्रत है। ११. पौषधोपवास व्रत : धर्म की पुष्टि करनेवाली उपवासयुक्त क्रिया को पौषधोपवास कहते हैं । एक वर्ष में निर्धारित पौषध करने का संकल्प पौषधो पवास' नाम का तीसरा शिक्षाव्रत है। १२. अतिथि संविभाग व्रत : अतिथि अर्थात् साधु मुनिराज आदि को शुद्ध आहार, पानी का संविभाग याने दान देने के बाद ही उस आहार आदी को उपयोग में लेना ‘अतिथि संविभाग' नाम का चौथा शिक्षाव्रत है। पाँच अणुव्रत तथा तीन गुणव्रत यावज्जीव अर्थात् जीवन भर के लिए भी लिये जाते हैं, जबकि शिक्षाव्रत मर्यादित' समय के लिए ही स्वीकारे जाते हैं। (अइयारे) पडिक्कमे देसि सव्वं - (इन बारह व्रतों में) दिवस संबंधी जो कोई अतिचार लगा हो, तो उन सबका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। बारह व्रतों के विषय में विस्तृत अतिचारों को आगे बताया जाएगा । यहाँ इतना खास ध्यान में रखना है कि शक्ति होते हुए भी इन व्रतों को स्वीकार न किया जाए अथवा स्वीकार करके बाह्य-अंतरंग जयणा का पालन न किया जाय तो अतिचार है। यह गाथा बोलते हुए श्रावक इन सब अतिचारों को सामान्य रीति से स्मृति में लाकर दोष से दूषित बनी आत्मा की निन्दा करते हुए सोचता है कि, 'मैं कितना प्रमादी हूँ कि गुरु भगवंतों के समझाने पर भी मैंने महा मूल्यवान इन व्रतों का स्वीकार नहीं किया, एवं स्वीकार किया भी तो उनका स्मरण भी नहीं किया, एवं कभी स्मरण किया तो भी उनका पालन मात्र बाह्य से किया, परंतु व्रत पालन द्वारा आंतरिक परिणति को पलटाने का प्रयत्न नहीं किया। ये मैंने गलत किया है। इससे मैने मेरी आत्मा का ही अहित किया है। इसी कारण अब इन दोषों से विमुख होता हूँ एवं व्रत में स्थिर होता हूँ।' 1. तत्राणुव्रतानि गुणव्रतानि च प्रायो यावत्कथितानि शिक्षाव्रतानि पुनरित्वरिकाणि। - हितोपदेश
SR No.006127
Book TitleSutra Samvedana Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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