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________________ ७८ दर्शनाचार वंदित्तु सूत्र कुलिंगियों की प्रशंसा एवं परिचय जैसे वर्जित हैं, वैसे ही जैन कुल में जन्म लेने के कारण बाह्य दृष्टि से जैन होते हुए भी जो नास्तिक हो, आत्मादि विषय में जिनको विश्वास नहीं है एवं मात्र भौतिक सुख में ही जो रचे-पचे रहते है, वैसे नास्तिक लोगों का परिचय या उनके ऊपरी नजर से दिखते औदार्यादि गुणों की प्रशंसा करना वह भी सम्यग्दर्शन को दूषित करता हैं। इसलिए सम्यग्दृष्टि आत्मा को ऐसी प्रशंसा नहीं करनी चाहिए। सम्मत्तस्सइआरे पडिक्कमे देसि सव्वं : दिन के दौरान सम्यक्त्व के विषय में जो कोई भी अतिचार लगा हो उन सबका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। सम्यक्त्व के विषय में इस गाथा में बताए हुए पाँच अतिचारों के सिवाय भी जो कोई छोटे-बड़े अतिचार दिन भर में लगे हों, उन सब अतिचारों को स्मरण में लाकर साधक को उनकी आत्मसाक्षी से निन्दा एवं गुरु समक्ष गर्दा करनी हैं। निन्दा एवं गर्हा द्वारा श्रावक उन अतिचारों से वापस लौटकर सम्यग्दर्शन के शुभ भावों में एवं शुभ आचारों में स्थिर होता है। यही उसके लिए सम्यग्दर्शन के अतिचारों का प्रतिक्रमण हैं। इन दोनों गाथाओं का उच्चारण करते हुए श्रावक सोचता है कि - 'सर्व सुख के साधन भूत एवं सर्व गुणों के आधार तुल्य इस सम्यग्दर्शन गुण को प्राप्त करने, एवं प्राप्त किए हुए को टिकाने के लिए मुझे अत्यंत सावधान रहना ज़रूरी था। बाह्य आचार एवं अंतरंग विचारों में पूरी सावधानी रखनी ज़रूरी थी। किसी की बातों एवं विचारों से प्रभावित होकर मुझे भ्रमित होने की ज़रूरत नहीं थी। तो भी प्रमाद के कारण, असावधानी के कारण या मिथ्यात्वियों की बातों को सुनने के कारण, मैंने इस निर्मल गुण को मलिन किया है। मेरे सम्यग्दर्शन को मलिन करने वाले सब दोषों को याद करके मैं उनकी निन्दा, गर्दा करता हूँ एवं पुनः उन गुणों में स्थिर रहने के लिए ही, आपत्तिकाल में भी निर्मल सम्यक्त्व गुण को टिकाकर रखने वाले आर्द्रकुमार, महाश्रावक सद्दालक, महाराजा श्रेणिक वगैरह सत्पुरुषों एवं सुलसा, दमयंती, सीता जैसी महासतियों के चरणों में मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूँ। उनके जैसा सत्त्व मुझमें प्रकट हो ऐसी प्रार्थना कर पुनः इस गुण में स्थिर होने का प्रयत्न करता हूँ।'
SR No.006127
Book TitleSutra Samvedana Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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