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सूत्रसंवेदना - ३
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अनेक प्रकार का होता है । इसके अलावा भी अनेक प्रकार से सांकेतिक पच्चक्खाण रूप अनशन हो सकता है, जैसे कि 'मुट्ठीबंध कर नवकार गिनकर, मुठ्ठी न खोलने तक आहार का त्याग' वगैरह ।
२. ऊणोअरिआ - पेट भर कर नहीं खाना ।
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अनशन नामक तप पूर्ण होने के बाद जब साधना के लिए उपयोगी शरीर को टिकाने के लिए आहार करना पड़े, तब जितना हो सके उतना कम आहार लेना 'ऊनोदरी' नाम का दूसरे प्रकार का बाह्य तप है । अनशन में आहार का त्याग है जब कि ऊनोदरी में खाना खाकर भी भूखे रहने की बात है ।
साधना के लिए जब आहार की आवश्यकता पड़े, तब अगर पेट भरकर, दबा दबाकर खाया जाए तो धर्मकार्य में आलस आता है, एवं शरीर में जड़ता आती है । इसलिए शास्त्रों में अपनी सामान्य खुराक से जितना बन सके, उतना कम आहार -पानी लेने रूप उनोदरी नाम के तप का वर्णन किया गया है । यह तप करने से आहार संज्ञा जीती जाती है एवं योग साधना में उद्यमशील रह सकते हैं ।
सामान्य से पुरुष का आहार ३२ कवल एवं स्त्री का आहार २८ कवल का होता है । उसमें से एक-दो कवल कम करते करते ३१ कवल तक न्यून आहार करना, द्रव्य ऊनोदरी तप है एवं आहार लेते समय भी होनेवाले रागादि भावों को निरंतर कम करने का प्रयत्न करना या क्रोधादि कषायों को अल्प करने का प्रयत्न करना, भाव ऊनोदरी तप है ।
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37. अनशन तप के अनेक प्रकार पच्चक्खाण भाष्य में देखें । 38. बत्तीसं किर कवला, आहारो कुच्छिपूरओ भणिओ ।
पुरिसस्स महिलियाए, अट्ठावीसं भवे कवला ।।१।। कवलाए य परिमाणं, कुक्कुडि अंडयपमाणमेत्तं तु ।
जो वा अविगियवयणो, वयणम्मि छुहेज्ज वीसत्थो । २ । । - द. वे. गा. ४० हारिभद्रीय वृत्ति जितना खुराक मुँह से डालने के बाद मुंह की आकृति विकृत न बने उतनी खुराक को एक
कवल कहते हैं अथवा मूर्गी के अंडे जितना १ कबल गिनना ।
39. कोहाइणमणुदिणं, चाओ जिणवयण भावणाउ अ । भावोणोदरिआ वि हु, पन्नता वीयराएहिं ।।
स्थानाङ्ग सूत्र- १८२ वृत्तौ