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________________ सूत्रसंवेदना-३ अन्वय सहित संस्कृत छाया: अनशनम् ऊनोदरिका, वृत्ति-संक्षेपणं रस-त्यागः । काय-क्लेशः संलीनता च, बाह्यं तपः भवति ।।६।। गाथार्थ: अनशन, ऊनोदरी, वृत्तिसंक्षेप, रसत्याग, काय-क्लेश संलीनता : ये छः प्रकार के बाह्य तप हैं । विशेषार्थ: १. अणसणं - देश से या सर्व से आहार का त्याग करना ‘अनशन' नाम का प्रथम बाह्य तप है। मुमुक्षु आत्मा समझता है कि आहार लेना उसका स्वभाव नहीं, तो भी आत्मा जब तक शरीर के साथ संलग्न है, तब तक साधना में सहायक शरीर को टिकाने के लिए आहार की जरूरत पड़ती है । अनादि अभ्यस्त ‘आहार संज्ञा के कारण आहार लेते समय राग-द्वेष के परिणाम प्रकट होते हैं । प्रकट हुए इस राग-द्वेष के भाव से बचने के लिए यथाशक्ति प्रयत्न द्वारा आहार का त्याग करना उचित है ऐसा विचार कर सर्वथा या आंशिक तौर से आहार का त्याग करने की क्रिया को अनशन तप कहते हैं । अनशन तप दो प्रकार का होता हैं : यावत्कथिक एवं इत्वरकथिक जिसमें जीवन पर्यंत आहार का त्याग करना होता है, उसे यावत् कथिक अनशन 33. संज्ञा अर्थात् समझ, अभिलाषा वगैरह अर्थात् अनादिकाल से आत्मा को लगा हुआ पौद्गलिक वासनाओं का बल । उसके चार प्रकार हैं - १. क्षुधा वेदनीय कर्म के उदय से होनेवाली आहार की अभिलाषा ‘आहार संज्ञा' है - २. भय मोहनीय कर्म के उदय से भय लगे तो वह भय संज्ञा' है - ३. वेद मोहनीय कर्म के उदय से मैथुन की अभिलाषा जागे वह मैथुनसंज्ञा एवं ४. तीव्र लोभ के उदय से जड पदारों में मूर्छा (ममत्व) परिग्रह' संज्ञा कहलाती है। 34. न अशनम् अनशनम् आहारत्याग इत्यर्थ - - द. वै. नियुक्ति गाथा ४० की हारिभद्रीय वृत्ति 35. इत्वरं - परिमितकालं, तत्पुनश्चरमतीर्थकृत्तीर्थे चतुर्थादिषण्मासान्तम् यावत्कथिकं त्वाजन्मभावि ।
SR No.006126
Book TitleSutra Samvedana Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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