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________________ ७५ नाणंमि दंसणम्मि सूत्र से रोकना चाहिए, या यह तप कब पूरा होगा वैसा भाव भी नहीं आने देना चाहिए । इसके लिए 'देहदुःखं महाफलं' जैसे अनेक शास्त्र प्रचनों का सहारा लेकर साधक को सोचना चाहिए कि, “आज तक शरीर की अनुकूलताओं को पूरी करने के लिए मैंने बहुत से कर्म बांधे हैं, देह के ममत्व के कारण बहुतों को कष्ट दिया है, इस देह को कष्ट देकर अब तो कर्म नाश करने का अवसर आया है, देह के ममत्व को दूर करने का यह समय है, जड़ के प्रति आसक्ति को तोड़ने का यह मौका है । मैं आत्मा हूँ, अनंत शक्ति का स्वामी हूँ, ज्ञान मेरा गुण है, आनंद मेरा स्वभाव है । इस स्वभाव का अनुभव करना मेरा धर्म है । क्षुधा-तृषा यह तो शरीर का धर्म है । शरीर की ममता के कारण आज क्षुधा आदि की वेदना मुझे शरीर की नहीं, परन्तु मेरी खुद की लगती है । वास्तव में इस भूख-प्यास को सहन करते हुए अगर शरीर की ममता टूट जाए एवं समता भाव की प्राप्ति हो जाए तो यह दुःख तो क्या, अनंतकाल का अनंत दुःख भी नाश हो जाएगा। इसके अलावा, इस क्षुधादि का दुःख मैंने कर्मनिर्जरा करने के लिए स्वाधीनता से स्वीकार किया है । इस तप से तो मेरे बहुत सारे कर्म नाश हो जाएँगे । इससे कई ज्यादा क्षुधा एवं तृषा को पराधीनता से मैंने नरक एवं तिर्यंच की गति में अनंतकाल तक सहन किया है । अल्पकाल के लिए प्रभु की आज्ञा के अनुसार स्वयं इस क्षुधा-तृषा को स्वीकार कर मैं सहन कर लूँ, तो मेरे बहुत से कर्म नष्ट हो जाएँगे, मेरा कल्याण हो जाएगा ।" ऐसे विचारों के कारण शरीर में जैसे जैसे कष्ट बढता जाता है, वैसे वैसे तप के कष्ट में कर्म निर्जरारूप कमाई का दर्शन होता जाता है, जिसके कारण तप धर्म के आराधक का चित्त बहुत प्रसन्न होता जाता है । इस प्रकार चित्त की प्रसन्नतापूर्वक किए हुए तप को अग्लानि से किया हुआ तप कहते हैं, परन्तु जो व्यक्ति शक्ति का विचार किए बिना प्रथम तप धर्म स्वीकार लेता है एवं बाद में 'यह तप कब पूरा होगा' ऐसे विचार से अधीर बनकर बेगार नौकर की तरह, जैसे-तैसे तप पूरा करता है तो उसका वैसा तप अग्लान' तप नहीं कहलाता। 30. अग्लान्या न राजवेष्टिकल्पेन यथाशक्त्या वा । - द. वै. हारिभद्रीय वृत्ति
SR No.006126
Book TitleSutra Samvedana Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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