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है। ये सूत्र प्रमाण में छोटे हैं; परन्तु अर्थ से अत्यंत गंभीर हैं। परिणाम स्वरूप साधक उनके द्वारा गहराई से अपने छोटे से छोटे दोष की भी गवेषणा कर सकता है।
सद्गुरु के सान्निध्य में विनयपूर्वक इस सूत्र के हार्द तक पहुँचने का प्रयत्न करें तो अनादिकाल से उल्टी चाल चलती अपनी गाड़ी को 'यू टर्न' मारकर सीधे मार्ग पर स्वभाव की ओर चला सकते हैं। यद्यपि ये कार्य सरल नहीं है। जिस प्रकार सुई में धागा पिरोने की सामान्य क्रिया करने के लिए सुई, धागा एवं हाथ स्थिर करना पड़े एवं बाद में मन एवं चक्षु को एकाग्र करे तो धागा सुई में पिरोया जा सकता है, वैसे ही उत्कृष्ट प्रतिक्रमण का अनुभव करने के लिए पहले तो भटकते चित्त को सूत्र, उसका अर्थ, उसकी संवेदना वगैरह में स्थिर करना पडे, समझ एवं श्रद्धा को मजबूत करना पड़े, हृदय को संवेग के भावों से भावित करना पड़े और बाद में उपयोगपूर्वक एवं विधि अनुसार प्रतिक्रमण किया जाए तो आत्मा अपने आप बाह्यभावों से वापस लौटती है। आत्मभाव में स्थिर होती है एवं आत्मिक आनंद पा सकती है।
इस विषम काल में भी आत्मिक सुख को पाने के लिए ऐसे सुंदर साधन हमें प्राप्त हुए हैं, उनमें सब से बड़ा उपकार अरिहंत परमात्मा का है।
परम कृपालु परमात्मा की वाणी को गणधर भगवंतों ने सूत्रबद्ध किया। श्रुतधरों की उज्जवल परंपरा द्वारा ये सूत्र हमें प्राप्त हुए, परन्तु उनके एकएक शब्द के पीछे छिपे हुए गहरे भावों तक पहुँचने का काम सरल नहीं था। इन सूत्रों के उपर संस्कृत भाषा में रचे गए अनेक टीका ग्रंथों के सहारे इन भावों को पाने एवं अनेक जिज्ञासुओं को उन भावों तक पहुँचाने के लिए इस पुस्तक के माध्यम से मैंने यथाशक्ति प्रयत्न किया है। वैसा करने में मुझे नामी-अनामी अनेक लोगों की सहायता मिली है। इस अवसर पर उन सब के उपकारों की स्मृति ताजी हुई है।