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________________ ६६ सूत्रसंवेदना-३ दोषवाली होती है । उसमें दोष होना सहज है । जिस तरह गुलाब को चाहनेवाला कांटें की उपेक्षा करे, तो ही गुलाब का आनंद पा सकता है, वैसे ही दोष की उपेक्षा कर छोटे से छोटे भी गुण को अगर प्राधान्य दिया जाए तो ही साधर्मिक के प्रति भक्ति भाव प्रकट हो सकता है । पुण्योदय से गुणवान साधर्मिक का योग होने पर भी जो गुणवान् में रहे हुए किसी एक दोष को नहीं पचा सकते, मान, लोभ, अज्ञान, प्रमाद आदि के कारण उसकी भक्ति नहीं करते, वे दर्शनाचार की आराधना से वंचित रह जाते हैं । ८. पभावणे अट्ठ धर्म कथा आदि द्वारा जैन शासन की प्रख्यातिप्रसिद्धि करना ' प्रभावना' ' नाम का आठवाँ दर्शनाचार है । ,18 - 18a प्रकृष्ट भावना या प्रकर्षवाली भावना को प्रभावना कहते हैं । जिस प्रवृत्ति द्वारा लोगों में धर्मभावना प्रगट हो, लोग धर्म करने की वृत्तिवाले हों एवं उनकी धर्मभावनाएँ प्रकृष्ट हों, वैसी प्रवृत्ति को 'प्रभावना' नाम का दर्शनाचार कहते हैं। विशिष्ट शक्तिशाली साधक धर्मकथा ' करके अनेक जीवों को धर्म की तरफ आकर्षित करते हैं । इसके अतिरिक्त मिथ्यामति वालो के साथ चर्चा में जीतकर, विशिष्ट तप की आराधना करके तथा ज्ञान, विद्या या मंत्र आदि द्वारा प्रभावक पुरुष अनेक आत्माओं में धर्म की भावना प्रकट कर सकते हैं एवं प्रकट हुई भावना को प्रबल बना सकते हैं । धर्मकथा आदि करने की जिसमें विशिष्ट शक्ति नहीं है, ऐसे श्रावक भी अपनी सामर्थ्य के अनुसार उदारतापूर्वक यात्रा, पूजा वगैरह श्रावकजन उचित अनुष्ठान विधिपूर्वक करके भी 'प्रभावना' नामक इस दर्शनाचार का पालन कर सकते हैं । इस प्रकार अन्य के मन में धर्म के प्रति रुचि पैदा द. वै. सूत्र की हारिभद्रीय वृत्ति 18. प्रभावना-धर्मकथादिभिस्तीर्थख्यापना। 18A पावयणी धम्मकही, वाई नेमित्तिओ तवस्सी य । विज़ा-सिद्धो अ कधी, अट्ठेव पभावगा भणिया ।। प्रावचनिक, धर्मकथन करनेवाला, वादी, नैमित्तिक, तपस्वी, विद्यावान, सिद्ध और कवि यह आठ प्रकार के प्रभावक कहे गये हैं। - • सम्यक्त्व सप्तति - ३२.
SR No.006126
Book TitleSutra Samvedana Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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