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________________ सूत्रसंवेदना-३ सा धर्म किस तरीके से करने से इस संसार का दुःख टलेगा एवं सदा के लिए मोक्ष का सुख मिलेगा, उसका कोई विचार नहीं कर सकते। इसी कारण ऐसे जीव धर्म कार्य करते हुए भी सम्यग्दर्शन नहीं पा सकते या पूर्व में कभी अमूढ़ता से पाए हुए सम्यग्दर्शन को टिका नहीं सकते । इसलिए चिरकालीन सुख देनेवाले धर्म मार्ग में बुद्धिमान पुरुष को निर्विचारक नहीं रहना चाहिए, शास्त्र को समझने एवं तत्त्व का निर्णय करने के लिए प्राप्त हुई बुद्धि का पूर्ण उपयोग करना चाहिए । आध्यात्मिक क्षेत्र में सक्रिय विवेकपूर्ण विचार दर्शनाचार का आचार है एवं उसका अभाव अतिचार है। इन चारों आचारों का पालन विचारशील व्यक्ति ही कर सकता है एवं दर्शनाचार के शंका, कांक्षा आदि अतिचारों भी धर्म संबंधी विचार करनेवाले को ही लगते हैं । विचारविहीन व्यक्ति तो सम्यग्दर्शन से दूर ही बैठा है । वह आचारों का पालन ही नहीं करता तो अतिचारों की बात ही कहां से आएगी? अभी तक के चारों आचार अपनी आंतरिक श्रद्धा को दृढ़ एवं अविचलित रखने संबंधी थे । आगे के चार आचार अन्य व्यक्ति के साथ अपने व्यवहार से जुड़े हैं, दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार अन्य के लिए धर्म प्राप्ति का कारण बनता है, साथ ही उस अच्छे व्यवहार से उपार्जित पुण्य से अपनी खुद की उन्नति भी सुलभ बनती है । ५. उववूह - गुणवान् व्यक्ति के गुणों की प्रशंसा करके उसके धर्म में वृद्धि करना ‘उपबृंहणा' नामक पाँचवां दर्शनाचार है । सम्यग्दर्शन प्राप्त की हुई अथवा पाने की इच्छावाली आत्माएँ गुणानुरागी होती हैं । जहाँ मोक्ष मार्ग के अनुकूल गुण दिखाई देता हो, वहाँ उनका दिल नाच उठता है एवं हचित अवसर हो तो वे उस गुण की प्रशंसा किए बिना भी नहीं रहते । कभी ऐसा लगे कि अभी प्रशंसा करने से सामनेवाले व्यक्ति का अहित होगा तो मौन रहते हैं, पर उनका हृदय तो गुण देखकर आनंद में आ
SR No.006126
Book TitleSutra Samvedana Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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