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सूत्रसंवेदना-३
वैसे ज्ञानाध्ययन के समय न पढ़ना, प्रमाद करना या पढ़ा हुआ भूल जाना भी ज्ञानाचार विषयक अतिचार है ।।
२. विणए - विनयपूर्वक पढ़ना ‘विनय' नामक ज्ञान का दूसरा आचार है। विनय का सामान्य अर्थ है नम्रता एवं विशेष अर्थ है - कर्मों का क्षय करवाने, वाला योग्य व्यवहार ।
ज्ञान की, ज्ञानी गुरु भगवंत की, ज्ञान के साधनभूत पुस्तक, पेन आदि उपकरण एवं अध्ययन करनेवाले सहवर्ती की भक्ति करना तथा किसी भी तरीके से उनकी आशातना न हो जाए उसका ख्याल रखना; विनय नाम का दूसरा ज्ञानचार है। जैसे कि गुरु भगवंत आए तब उनके सामने जाना, उनको बैठने के लिए आसन देना, चरण धोना, विश्रामणा करना, वंदन करना, उनके आदेश को पालने के लिए तत्पर रहना इत्यादि । पुस्तकादि को अच्छी तरह से एवं बहुमानपूर्वक लेना तथा रखना, अपवित्र स्थान में नहीं ले जाना, उनके उपर आहार-निहार न करना, उनको जहाँ तहाँ नहीं फेंक देना आदि ज्ञान के साधनों का विनय है । इसके अलावा ज्ञानी के योग्य अनुकूलताओं की व्यवस्था करना आदि ज्ञानी का विनय कहलाता है ।
आचार का पालन करने से ज्ञान के लिए अजीर्णता रुप मान दोष की वृद्धि नहीं होती, परन्तु जैसे जैसे शास्त्राध्ययन बढ़ता है, वैसे वैसे जीव अधिक-अधिक नम्र बनता जाता है, विनयी बनता है एवं ऐसे जीव को योग्य जानकर प्रसन्न हुए गुरु भी मन लगाकर शास्त्रज्ञान करवाते हैं । इस प्रकार इस आचार के पालन से ज्ञान गुण की वृद्धि होती है, जब कि विनय का पालन नहीं करनेवाले उद्धत शिष्य को गुरु द्वारा ज्ञान नहीं मिलता एवं मिला हो तो पचता नहीं, इसलिए 'विनय' नाम के आचार का पालन न करना, ज्ञानाचार विषयक अतिचार है । 6. विनीयते क्षिप्यते अप्रकारं कर्मानेनेति विनयः । ___ गुरोर्ज्ञानिनां ज्ञानाभ्यासिनां ज्ञानस्य ज्ञानोपकरणानां च पुस्तक-पृष्ठक-पत्र-पट्टिका-कपरिकाउलिका-टिप्पनक-दस्तरिकादीनां सर्वप्रकारैराशातनावर्जनभक्त्यादिर्यथाहँ कार्यः ।
- आचार प्रदीप