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सूत्रसंवेदना-३ श्राद्ध प्रतिक्रमण सूत्र वृत्ति तथा प्रतिक्रमण हेतु गर्भ सज्झाय में बताया गया है कि इन पंचाचार की विशुद्धि के लिए श्रावक को दो समय प्रतिक्रमण करना चाहिए। इस गाथा का उच्चारण करते हुए सोचना चाहिए,
“परमकृपालु परमात्मा ने कितना महान उपकार किया है ! उन्होंने मुझे मेरा शुद्ध स्वरूप बताया एवं वहाँ तक पहुँचने का उत्तम मार्ग भी बताया । अनादिकाल से आवृत्त हुई मेरी गुणसंपत्ति को प्रकट करनेवाले इन पंचाचार का पालन कर अब तो मुझे भवभ्रमण का अंत लाना ही है । हे प्रभु! शक्ति होते हुए भी मुझ से पंचाचार का पालन न हुआ हो या उनमें भूल
हुई हो, तो उनको सुधारने की मुझे शक्ति दीजिए ।" अवतरणिका: पाँच प्रकार के आचार में प्रथम ज्ञानाचार का वर्णन है :
गाथा:
काले विणए बहुमाणे, उवहाणे तह अनिण्हवणे ।
वंजण-अत्थ-तदुभए, अट्टविहो नाणमायारो ।।२।। अन्वय सहित संस्कृत छाया:
काले विनये बहुमाने, उपधाने तथा अनिह्नवने । व्यञ्जनार्थतदुभये, अष्टविधो ज्ञानाचारः ।।२।। गाथार्थ :
शास्त्र में निश्चित किए गए समय पर, गुर्वादि के विनयपूर्वक, अंतरंग बहुमानपूर्वक, (उपक्षान आदि) तप पूर्वक, ज्ञानदाता गुरु को छिपाए बिना, सूत्र के शुद्ध उच्चारणपूर्वक, अर्थ की विचारणापूर्वक और शब्द एवं अर्थ दोनों की शुद्धिपूर्वक शास्त्राभ्यास करना ज्ञानाचार है ।