________________
नाणंमि दंसणम्मि सूत्र
४५ में भी इस विषय पर अनेकों पुस्तके लिखी गइ हैं । यहाँ तो हरेक आचार की बातें बहुत ही संक्षेप में बताई गई हैं । विशेष जानकारी के लिए साधकों को आचारप्रदीप वगैरह ग्रंथों का आलोचन करना चाहिए ।
ये गाथाएँ श्रीमद् भद्रबाहुस्वामीजी द्वारा रचित दशवैकालिक की नियुक्ति' में मिलती हैं । उसके उपर तार्किक शिरोमणि प.पू.आचार्य श्री हरिभद्रसूरीश्वरजी महाराज की टीका भी उपलब्ध है । इसके अलावा उत्तराध्ययन सूत्र की तीन गाथाएँ भी इस सूत्र की तीसरी, छठ्ठी एवं साँतवी गाथा से मिलती हैं ।
मूल सूत्र:
नाणम्मि दंसणम्मि अ, चरणम्मि तवम्मि तह य वीरियम्मि । आयरणं आयारो, इअ एसो पंचहा भणिओ ।।१।। काले विणए बहुमाणे, उवहाणे तह अनिण्हवणे । वंजण-अत्थ-तदुभए, अट्ठविहो नाणमायारो ।।२।। निस्संकिअ निक्कंखिअ, निवितिगिच्छा अमूढदिट्ठी अ । उववूह-थिरीकरणे, वच्छल्ल-पभावणे अट्ठ ।।३।। पणिहाण-जोग-जुत्तो, पंचहिं समिईहिं तीहिं गुत्तीहिं । एस चरित्तायारो, अट्ठविहो होइ नायव्यो ।।४।। बारसविहम्मि वि तवे, सभिंतर-बाहिरे कुसल-दिवे । अगिलाइ अणाजीवी, नायव्वो सो तवायारो ।।५।। अणसणमूणोअरिआ, वित्ती*-संखेवणं रसञ्चाओ । काय-किलेसो संलीणया य बज्झो तवो होइ ।।६।। पायच्छित्तं विणओ, वेयावचं तहेव सज्झाओ । झाणं उस्सग्गो वि अ, अभिंतरओ तवो होइ ।।७।।
* पाइअ शब्दानुशासन के समास को लगते नियम को लेकर इ का ई हुआ है ।