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________________ ४३ नाणंमि दंसणम्मि सूत्र संबंधी बातों से प्रीति होती है, वैसे मोक्ष के प्रति रुचि रखनेवाले को इन आचारों का नाम भी आनंददायी लगता है । मोक्ष के महासुख का आनंद पाने के लिए सर्वप्रथम मोक्ष क्या है ? उसमें बाधक तत्त्व कौन से हैं ? उसकी जानकारी आवश्यक है । मोक्ष याने और कुछ नहीं पर आत्मा के शुद्ध स्वरूप की प्राप्ति... अपनी आत्मा भी अतीन्द्रिय है तथा आत्म-स्वरूप की प्राप्ति में बाधक बने, वैसे तत्त्व भी अतीन्द्रिय हैं । अतीन्द्रिय पदार्थों का ज्ञान सर्वज्ञ भगवंत के शास्त्र के बिना कहीं भी नहीं मिलता। इस शास्त्रज्ञान को पाने के लिए जो सत्प्रवृत्ति करनी जरूरी है उसका नाम ज्ञानाचार है । इस सत्प्रवृत्ति के सामान्य से आठ प्रकार इस सूत्र की दूसरी गाथा में बताए गए हैं। इन आचारों के माध्यम से शास्त्रज्ञान प्राप्त करने के बाद भी उस ज्ञान के प्रति श्रद्धा अति आवश्यक है । श्रद्धा के बिना अनेक शास्त्रों का ज्ञान भी श्रेय मार्ग पर आगे बढ़ने नहीं देता । श्रद्धा रहित ज्ञान सद्ज्ञान नहीं बनता । इसलिए श्रद्धा को प्राप्त करने तथा उसे अधिक दृढ़ करने के लिए जिन आचारों का पालन आवश्यक है, उन्हें दर्शनाचार कहते हैं । उसके आठ भेद इस सूत्र की तीसरी गाथा में बताए गए हैं। ज्ञान तथा श्रद्धा प्राप्त होने के बाद भी जब तक मन एवं इन्द्रियों को गलत मार्ग से वापिस लाकर, सुखकारक संयम के मार्ग में स्थिर न किया जाय, तब तक मोक्ष के सुख की झांकी भी नहीं हो सकती । मोक्ष के आंशिक सुख को पाने के लिए, मन और इन्द्रियों को स्थिर कर, आत्माभिमुख बनाने के लिए जिन आचारों का पालन जरूरी है, उन्हें चारित्राचार कहते हैं । उसके आठ प्रकारों का वर्णन इस सूत्र की चौथी गाथा में किया गया है । चारित्र का एक विशेष प्रकार तप कहलाता है । तत्त्वार्थ सूत्र में कहा गया है : 'तपसा निर्जरा च' अर्थात् तप करने से कर्म का संवर और निर्जरा होती है । मोक्षमार्ग में बाधक तत्त्वों का विनाश एवं ज्ञानादि गुणों की वृद्धि इस तप द्वारा होती है, यह तप किस प्रकार एवं किस भाव से करना चाहिए, यह पाँचवीं
SR No.006126
Book TitleSutra Samvedana Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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