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________________ xo सूत्रसंवेदना-३ इन व्रतों को स्वीकार करके उनके सुविशुद्ध पालन के लिए समिति एवं गुप्ति में रहना चाहिए । प्रमाद आदि दोषों के कारण उनका खंडन होने से शिक्षाव्रत दूषित होता है और उस से कर्मबंध होता है और दुःख की परंपरा बढ़ती है । यह पद बोलते हुए इन सब दोषों को याद करके, दुखाई हृदय से उनकी आलोचना आदि करनी चाहिए, एवं पुनः ऐसा न हो वैसे संकल्प के साथ उनका 'मिच्छा मि दुक्कडं' देना चाहिए । बारसविहस्स सावगधम्मस्स जं खंडिअंजं विराहिअंतस्स मिच्छा मि दुक्कडं" - बारह प्रकार के श्रावक धर्म का जो खंडन या विराधन किया है उनका (हे भगवंत !) मैं 'मिच्छा मि दुक्कडं' देता हूँ । ग्रहण किए व्रत, नियम या प्रतिज्ञा का आंशिक भंग खंडना है, एवं सर्वथा भंग विराधना' है जैसे कि, सामायिक व्रत का स्वीकार करके श्रावक को स्वाध्यायादि में ही रत रहना चाहिए, स्वाध्याय में लीन श्रावक को भी अनाभोग या सहसात्कार से संसार की किसी क्रिया का स्मरण हो जाए अथवा अनावश्यक बातचीत में मन चला जाए जिससे समभाव की वृद्धि के लिए की हुई सामायिक में स्खलना हो या उसमें दोष लग जाए, तो वह व्रत के खंडनरूप हैं । _ 'मैं सामायिक में हूँ' 'निरर्थक बातें करने से मेरी प्रतिज्ञा भंग होती है ।' - ऐसा जानते हुए भी मजे से विकथा में जुड़ना या पानी, अग्नि, वायु आदि की विराधना हो वैसी प्रवृत्ति करना विराधना है । संक्षेप में अनाभोग या सहसात्कार से सावध का स्मरण या उसमें प्रवर्तन खंडन है, एवं जिसमें जानबूझ कर व्रत की उपेक्षा करके अनुचित वर्तन किया गया हो वह विराधना है, एवं प्रतिज्ञा का पूर्ण भंग हो, वैसी प्रवृत्ति करना व्रतभंग है। 20. 'मिच्छा मि दुक़्कडं' का विशेष अर्थ सूत्र संवेदना' भा. १ में से सूत्र नं. ५ में देखें । 21. यत्खण्डितं देशतों भानं विराधितं सुतरां भग्नं न पुनरभावमापादितम् । __- आवश्यक नियुक्ति
SR No.006126
Book TitleSutra Samvedana Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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