________________
'इच्छामि ठामि' सूत्र बडी हिंसा न करना, बड़ा झूठ न बोलना आदि नियम तोकर, जयणापूर्वक उस नियम का पालन करना चाहिए । तभी नियम का यथायोग्य पालन हो सकता है, लेकिन उस तरह नहीं जीने से बहुत बार बड़ी हिंसा आदि हो जाती हैं, वे इन व्रतों के अतिचार हैं । इन व्रतों में लगे अतिचारों को याद करके उनकी आलोचना आदि करके उनकी शुद्धि के लिए यत्न करना चाहिए ।
तिण्हं गुणव्वयाणं - तीन प्रकार के गुणव्रतों का (जो कोई खंडन या विराधन हुआ हो उनका मिच्छा मि दुक्कडं) ।
अणुव्रतों की पुष्टि करनेवाले व्रत गुणव्रत कहलाते हैं । १. दिशा का परिमाण करना अर्थात् हर एक दिशा में जाने-आने की सीमा निर्धारित करना। २. भोग-उपभोग की सामग्री में नियमन करना । ३. अनर्थ दंड का त्याग करना अर्थात् जिससे आत्मा निष्कारण दंडित हो ऐसी क्रिया का त्याग करना : ये तीन गुणव्रत हैं।
दिशा परिमाण आदि व्रत लेकर हमेशा और हरपल उन्हें याद रखना चाहिए। ऐसा नहीं होने के कारण कईबार दिशा में वृद्धि, व्रत में त्याग की हुई चीजों का भोग-उपभोग एवं न करने योग्य अनर्थकारी कार्य हो जाते हैं । व्रत विषयक यह अतिचार है ।
चउण्हं सिक्खावयाणं - चार प्रकार के शिक्षाव्रत का (जो कोई खंडन या विराधन हुआ हो उसका मिच्छा मि दुक्कडं)
संयम जीवन का शिक्षण-शिक्षा जिससे प्राप्त हो, उसे शिक्षाव्रत कहते हैं। सर्वविरति का इच्छुक श्रावक अपनी अनुकूलता के मुताबिक १. सामायिक, २. देशावगासिक, ३. पौषधोपवास, ४. अतिथि संविभाग : इन चार व्रतों को ग्रहण करता है।
शक्ति होते हुए पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत एवं चार शिक्षाव्रतों को स्वीकार नहीं किया हो, स्वीकार कर उनका यथायोग्य पालन नहीं किया हो, वैसे ही उनका स्मरण भी न किया हो, तो वह सर्व व्रत विषयक अतिचार है ।