________________
'इच्छामि ठामि' सूत्र . ३७ प्रत्याख्यानीय, अप्रत्याख्यानीय या अनंतानुबंधी स्तर का बम जाए तो वे प्रतिषिद्ध कषाय के करण स्वरूप कषाय का खंडन कहलाता है।
उसी प्रकार श्रावक-श्राविकाओं को भी ध्यान रखना चाहिए कि, करना पड़े एवं कषाय करे या निमित्त मिलने पर कषाय हो जाए, तो उनकी भूमिका के मुताबिक प्रत्याख्यानीय या अप्रत्याख्यानीय कषाय ही क्षंतव्य है । उनसे नीचे स्तर पर रहे अनंतानुबंधी कषाय अगर हो जाए, तो वे भी न करने योग्य कषाय होने के कारण, प्रतिषिद्ध करण स्वरूप कषायों का खंडन है ।
जैसे कांटा कांटे से ही निकल सकता है, वैसे अमुक भूमिका में कषायों के नाश के लिए कषायों का ही सहारा लेना पड़ता है । ऐसे कषायों को करने योग्य कषाय अथवा प्रशस्त कषाय कहते हैं । शास्त्रकारों ने अमुक भूमिका में तो ऐसे कषाय करने का विधान किया है । जैसे कि, संसार, संसार की सामग्री एवं संसार के संबंधों के राग को तोड़ने के लिए श्रावक-श्राविकाओं को देवगुरु-धर्म की सामग्री के प्रति राग करना योग्य है, साधु साध्वीजी भगवंत को भी अतत्त्व के प्रति राग को निकालने के लिए तत्त्व के प्रति राग तथा रुचि बढ़ानी चाहिए एवं अतत्त्व के प्रति अरुचि-घृणा उत्पन्न करनी चाहिए । इस प्रकार भूमिका के अनुसार प्रशस्त राग-द्वेष न करना, वह करने योग्य कषाय न करना स्वरूप कषायों का खंडन है।
कषाय हेय हैं, आत्मा के लिए अहितकारी है ऐसा शास्त्रकार कहते हैं, तो भी कषायों को वैसा न मानना, सारी दुनिया कषायों से ही चलती है, कषायों की सफलता में ही आनंद है, उनकी ही वृद्धि के लिए दुनिया मेहनत करती है, इसलिए कषाय कभी छोड़ने जैसे नहीं हैं - ऐसा मानकर भगवान ने कषायों को जैसा कहा है वैसा न मानना कषायों के प्रति अश्रद्धा स्वरूप कषायों का खंडन है।
सोचे बिना बात बात में यह कहना कि, 'संसार में रहना हो तो राग तो करना पड़ता है, नहीं तो संसार में क्या आनंद है ? सब को अकुंश में रखना हो तो क्रोध तो करना ही पड़ता है, दुनिया में होशियार कहलाना हो तो चालाकी से