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________________ ३४ सूत्रसंवेदना-३ सामाइए - सामायिक के विषय में सामायिक शब्द से यहाँ सम्यक्त्व सामायिक एवं चारित्र सामायिक, दोनों को ग्रहण करना है । ‘सुए' शब्द से सम्यग्ज्ञान एवं सामाइए' शब्द से सम्यग्दर्शन एवं सम्यक्चारित्र, इस तरह इन दो शब्दों द्वारा मोक्ष के कारण रूप रत्नत्रयी का ग्रहण हो जाता है, एवं उनके विषय में सेवन किए गए दोषों का आलोचन इस पद द्वारा किया जाता है । वे दोष किन प्रकार के होते हैं इसका वर्णन पूर्व में 'दसणे' एवं 'चरित्ताचरित्ते' पदों में हो गया है । जिज्ञासा : श्रुतज्ञान एवं सामायिक ये दोनों “नाणे दंसणे चरित्ताचरित्ते” पद में समाविष्ट हो जाते हैं, फिर भी यहां उनको अलग से क्यों लिया ? तृप्ति : 'नाणे' पद से पांचों ज्ञान एवं 'चरित्ताचरित्ते' पद से देशविरति धर्म भी समाविष्ट हो जाते थे फिर भी पाँचों ज्ञानों में श्रुतज्ञान का महत्त्व बताने एवं चारित्र में सामायिक का विशेष महत्त्व बताने के लिए उनको अलग से ग्रहण किया होगा ऐसा लगता है । फिर भी इस विषय में विशेषज्ञ का विमर्श स्वागत योग्य है। अब विशेषरूप से-भिन्न भिन्न प्रकार से - चारित्र विषयक अतिचार बताते हैंतिण्हं गुत्तीणं - तीन गुप्ति की (जो कोई खंडना या विराधना हुई हो उसका 'मिच्छा मि दुक्कडं')। आत्म-अहितकर प्रवृत्ति से निवृत्त होना एवं आत्म हितकर प्रवृत्ति में जुडना व्यवहार से चारित्र है एवं निश्चय नय से स्वभाव में स्थिरता या आत्मा में रमणता चारित्र है, ऐसे चारित्र का यथायोग्य पालन करने के लिए मुनि भगवंतों को सदा एवं श्रावकों को सामायिक, पौषध के समय, मन-वचन-काया के गोपन रूप गुप्ति में रहना चाहिए, आवश्यकता बिना हाथ-पैर का हलनचलन, वाणी का व्यवहार या मन में विचार भी नहीं करना चाहिए । 18.तीन गुप्ति, पांच समिति, पांच महाव्रत आदि का विशेष वर्णन सूत्र संवेदना भाग-१ सूत्र-२ में देखें।
SR No.006126
Book TitleSutra Samvedana Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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