________________
'इच्छामि ठामि' सूत्र देशचारित्र के विषय में जो जो अतिचार लगे हों उनका विशेष वर्णन सूत्रकार आगे ‘पंचण्हमणुव्वयाणं' आदि पदों द्वारा करेंगे । यहाँ तो चरित्ताचरित्ते शब्द से, संग्रह रूप से ही देशचारित्र के अतिचारों की आलोचना करनी है ।
इस तरीके से ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र विषयक लगे हुए अतिचारों की आलोचना की । अब उन रत्नत्रयी को भेद से अर्थात् अलग प्रकार से याद करके उनके अतिचारों की आलोचना करते हैं ।
सुए सामाइए - श्रुत एवं सामायिक के विषय में सुए - श्रुतज्ञान के विषय में । गुरु के समागम या शास्त्र अभ्यास से जो ज्ञान प्राप्त होता है, उसे श्रुतज्ञान कहते हैं । जैन शासन की अविच्छिन्न परंपरा चालू रखने में यह श्रुतज्ञान एक विशिष्ट साधन है । भगवान की अनुपस्थिति में भगवान द्वारा कहे गए एवं गणधरों द्वारा मूलरूप में गूंथे हुए इस श्रुत के सहारे आज भी अनेक जीव संसार सागर तैर रहे हैं । ऐसे श्रुतज्ञान के विषय में आगे बताई गई कोई आशातना' यदि हुई हो तो उसकी आलोचना इस 'सुए' शब्द द्वारा की जाती है। __ यह 'सुए'" पद श्रुतज्ञान के लिए है, तो भी आवश्यक नियुक्ति में बताया गया है कि उसके उपलक्षण से यहाँ मतिज्ञान आदि पाँच ज्ञान का ग्रहण हो जाता है । मति ज्ञान आदि पाँच ज्ञान के विषय में अश्रद्धा, विपरीत प्ररूपणा आदि ज्ञान के विषय में अतिचार हैं ।
15. अधुना भेदेन व्याचष्टे- अब ज्ञान, दर्शन, चारित्र के भेद से मतलब विशेषता से उनके प्रभेद से
जैसे कि ज्ञान संबंधी कथन हो गया अब श्रुतज्ञान कहते है। - आवश्यक नियुक्ति 16. श्रुत विषयक आशातनाओं की समझ हों 'नाणे' पद की व्याख्या में तथा 'नाणम्मि' सूत्र में दी
17. 'सुए' त्ति श्रुतविषयः, श्रुतग्रहणं मत्यादिज्ञानोपलक्षणं, तत्र विपरीतप्ररूपणा, अकालस्वा
ध्यायादिरतिचारः । सामायिकग्रहणात् सम्यक्त्वसामायिकचारित्रः । - आवश्यक नियुक्ति