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सूत्रसंवेदना-३
इस पद का उच्चारण करते हुए साधक सोचता है कि,
“उत्सूत्रभाषण महापाप है, अनंत संसार का कारण है। ऐसा जानते हुए भी उपयोग न रखने के कारण आज मुझसे सूत्र के विरुद्ध बोला गया है और सूत्र के विरुद्ध वर्तन भी हो गया है । भगवन् ! यह मैंने बहुत बुरा किया है । अपने इस पाप के
लिए मैं अंतःकरण से क्षमा चाहता हूँ ।” उम्मग्गो - मार्ग से विरुद्ध आचरण उन्मार्ग है ।
सामान्यतया, सूत्र विरुद्ध क्रिया को उन्मार्ग क्रिया कहते हैं एवं विशेष तौर से देखा जाए तो औदयिक भाव उन्मार्ग है । कर्म के उदय से प्राप्त हुए अच्छे 7. मार्गः क्षायोपशमिक भावः, ऊर्ध्वभावात् उन्मार्गः, क्षायोपशमिकभावेनौदयिकभावसङ्क्रम इत्यर्थः ।
- आवश्यक नियुक्ति हारिभद्रिय टीका 8. शास्त्र में जीव को प्राप्त होनेवाले भाव पांच प्रकार के बताये हैं : १-क्षायिक, २-औपशमिक,
३-क्षायोपशमिक, ४-औदयिक, ५-पारिणामिक १ - क्षायिक भाव : कर्मों के सर्वथा क्षय से प्रकट होनेवाले भावों को क्षायिक भाव कहते हैं । जैसे जल में से कचरा निकलने पर जल निर्मल बनता है, वैसे आत्मा में रहे हुए कर्मों का सर्वथा क्षय होने पर आत्मा निर्मल बनती है एवं अनंत ज्ञानादि गुणसंपत्ति प्रकट होती है । २ - औपशमिक भाव : शुभ अध्यवसाय द्वारा आत्मा में विद्यमान कर्मों को उदय में न आने देना उपशम भाव है । जैसे जल में कतक चूर्ण डालने पर कचरा नीचे बैठ जाता है, वैसे ही कर्मों के उपशम होने पर थोड़े समय के लिए आत्मा जिस निर्मल भाववाली बनती है, उसे
औपशमिक भाव कहते हैं । ३ - औदयिक भाव : कर्म के छेदय से प्राप्त क्रोध, मान, माया, लोभ या राग, द्वेष आदि के परिणाम तथा मनुष्यादि गति, एकेन्द्रियादि जाति, रूपवान् या रूपहीन शरीर, समृद्धि या निर्धनता, प्राप्त हुए अच्छे-बुरे निमित्त वगैरह औदयिक भाव हैं । ४ - क्षायोपशमिक भाव : उदय में आए हुए कर्मों का फल बताए बिना क्षय करना एवं उदय में नहीं आए हुए कर्मों का उपशम करना क्षयोपशम भाव है । जैसे किसी वस्तु या व्यक्ति के सामने आने पर उसमें राग-द्वेषादि होने की संभावना होती है, परन्तु उस वस्तु या व्यक्ति के वास्तविकता का विचार कर उसमें रागादि भावों को न उठने देना अथवा रोकना क्षायोपशमिक भाव है । कर्मों के क्षयोपशम से ही विनय, विवेक, सत्श्रद्धा, सज्ज्ञान, सच्चारित्र आदि गुणों का विकास होता है । ५ - पारिणामिक भाव : भिन्न भिन्न अवस्थारूप में परिणाम पानेवाले भाव को पारिणामिक भाव कहते हैं, - भव्यत्व, अभव्यत्व, जीवत्व वगैरह ।