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________________ 26 सूत्रसंवेदना - ३ से हुए होते हैं । यह पद बोलते हुए अनुपयोग से या विषय, कषाय के अधीन होकर दिन भर में मन-वचन काया से हुई सर्व प्रवृत्तियों पर दृष्टिपात करना चाहिए एवं इन तीन योगों द्वारा कौन से अतिचार किस तरीके से कितनी मात्रा में लगे उनका स्मरण कर गुरु समक्ष उनकी आलोचना करनी चाहिए । अब मन, वचन एवं काया से कौन से पाप लगे हैं, उन्हें विशेष तौर से बताते हैं : 5 शास्त्र विरुद्ध राग द्वेष एवं अज्ञान का जिसने सर्वथा नाश किया है, उनको सर्वज्ञ वीतराग कहते हैं एवं सर्व का हित करनेवाले उनके वचन को 'शास्त्र' या 'सूत्र' कहते हैं । सूत्र विरुद्ध बोलना या आचरण करना उत्सूत्र कहलाता है । सु - सूत्र में जिस पदार्थ का जिस तरीके से निरूपण किया हो, उससे विपरीत रूप से निरूपण करना या शास्त्र विरुद्ध बोलना उत्सूत्र भाषण कहलाता है । उत्सूत्र भाषण अनंत संसार की वृद्धि का कारण बन सकता है । जैन दर्शन किसी भी पदार्थ को एक दृष्टिकोण से नहीं, परन्तु अनेक दृष्टिकोण से देखता है, इसलिए जैन दर्शन - जैन शास्त्र अनेकान्तात्मक कहलाते हैं । इस कारण से किसी भी सूत्र या उसके किसी एक पद का अर्थ करते हुए उसके तात्पर्य का विचार करना चाहिए, पूर्वापर का संदर्भ देखना चाहिए एवं उसे जानकर यह पद किस दृष्टिकोण से (किस नय से) कहा गया है, उसका निर्णय करना चाहिए । इस तरीके से निर्णय कर अर्थ किया जाए, तो ही प्रत्येक सूत्र को सम्यक् प्रकार 5. ऊर्ध्वं सूत्रादुत्सूत्रः सूत्रानुक्तः इत्यर्थः - सूत्र की मर्यादा से अतिरिक्त या सूत्र में नहीं कही हुई बात कहना, उत्सूत्र है । - आवश्यक निर्युक्त सूत्र में पदार्थ का जिस तरह से वर्णन किया हो, उसके विपरीत तरीके से उस पदार्थ को कहना, उत्सूत्र कहलाता है । शास्त्र में कहा है कि, आलू आदि कंदों में अनंत जीव हैं । इस बात श्रद्धा न करते हुए अगर कोई कहे कि, 'अगर आलू आदि में अनंत जीव हैं, तो क्यों दिखाई नहीं देते ? इसलिए आलू में अनंत जीव नहीं हैं । ऐसा कहना वैसे ही है जैसे कोई ये कहे कि स्वर्ग या नर्क किसने देखे हैं ? अगर स्वर्ग है, तो वहां से कोइ क्यों आता नहीं ? ऐसे बोल उत्सूत्र भाषण हैं । ऐसा उत्सूत्र भाषण अनंत संसार का कारण बन सकता है ।'
SR No.006126
Book TitleSutra Samvedana Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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