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________________ 'इच्छामि ठामि' सूत्र १७ इच्छं - 'भगवंत ! आपकी आज्ञा के मुताबिक मैं आलोचना करना चाहता हूँ ।' इन शब्दों का प्रयोग करने के पूर्व जिस साधक ने पाप एवं पाप के फल का विचार किया होता है, उसे उन पापों के प्रति तीव्र घृणा उत्पन्न हुई ही होती है। इसीलिए वह साधक अब पीछे के शब्द ज्वलंत उपयोगपूर्वक बोलता है । आलोएमि जो मे देवसिओ अइआरो कओ - दिन के दौरान मैंने जिस किसी भी अतिचार का सेवन किया हो, उसकी मैं आलोचना करता हूँ । _ 'अतिचार' शब्द का सामान्य अर्थ उल्लंघन करना होता है । श्रावक या साधु भगवंत की जो मर्यादाएँ हैं, उन्होंने जो व्रत-नियम स्वीकार किए हैं, उन मर्यादाओं का उल्लंघन करके-मर्यादाओं को तोड़कर जो आचरण हुआ हो या किया हो, उसे अतिचार कहते हैं। यह शब्द बोलते समय दिन में हुए सभी अतिचारों को स्मृति में लाने का प्रयत्न करना चाहिए । अब दिनभर में सामान्य से जो अतिचार हुए हों वे बताते हैं : काइओ, वाइओ, माणसिओ - कायिक, वाचिक एवं मानसिक (जो अतिचार लगे हों) दिवस संबंधी जो अतिचार लगे हों उन्हें तीन विभाग में विभाजित किए गए हैं - कुछ अतिचार काया से हुए होते हैं, कुछ वचन से एवं कुछ अतिचार मन 4. अतिचरणमतिचार शास्त्र में किसी भी व्रत नियम के उल्लंघन की चार भूमिकाएं बताई हैं । : १ - अतिक्रम २ - व्यतिक्रम ३ - अतिचार ४ - अनाचार १. अतिक्रम : स्वीकारे हुए व्रत का खंडन हो, वैसा विचार करना, जैसे कि आम नहीं खाने का, नियम लेने के बाद कभी सुंदर आम का फल देखने पर उसको खाने का विचार आना या इच्छा होना अतिक्रम है। २. व्यतिक्रम : स्वीकार किए हुए व्रत का खंडन हो वैसी बातचीत करना जैसे कि आम किस तरीके से प्राप्त करना, उस संबंधी बातचीत करना व्यतिक्रम है । ३. अतिचार : लिए हुए व्रत का खंडन हो वैसा प्रयत्न, जैसे कि, आम लेने के लिए भी कदम बढ़ाना, आम लाना, मुँह के नजदीक तक ले जाना, जहाँ तक ना खाए, वहां तक की प्रवृत्ति या विचार अतिचार है। ४. अनाचार : लिए हुए व्रत का पूरी तरह से खंडन हो वैसा प्रवर्तन, जैसे कि आम खाना, वह अनाचार है।
SR No.006126
Book TitleSutra Samvedana Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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