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________________ सूत्रसंवेदना-३ दुज्झाओ दुविचिंतिओ, दुर्ध्यानतः दुर्विचिन्तितः दुर्ध्यानरूप हों एवं दुष्ट चिंतनरूप हों असावग-पाउग्गो, अणायारो अणिच्छिअव्वो, अश्रावक-प्रायोग्यः, अनाचारः अनेष्टव्यः, (इस उत्सूत्र से लेकर अकरणीय तक के एवं दुर्ध्यान एवं दुष्ट चिंतनरूप अतिचार) अश्रावक प्रायोग्य है अर्थात् श्रावक को करने योग्य नहीं हैं, इसलिए वे अनाचार रूप हैं (इसीलिए ही) अनीच्छनीय (भी) हैं । (अब ये अतिचार किन विषयों में होते हैं - यह बताते हैं ।) नाणे दंसणे चरित्ताचरित्ते, ज्ञाने दर्शने चारित्राचारित्रे, ज्ञान के विषय में, दर्शन के विषय में, देश विरति चारित्र के विषय में (अब दूसरे तरीके से इन्हीं अतिचारों की विचारणा की जाती है।) सुए सामाइए, श्रुते सामायिके, श्रुत के विषय में एवं सामायिक के विषय में (अब चारित्र के विषय में जो अतिचार लगते हैं, वह बताते हैं-) तिण्हं गुत्तीणं, चउण्हं कसायाणं, तिसृणां गुप्तीनाम्, चतुर्णां कर्षीयाणाम्, तीन गुप्तिओं का, चार कषायों का पंचण्हं अणुव्बयाणं तिण्हं गुणव्वयाणं चउण्हं सिक्खावयाणं बारसविहस्स सावगधम्मस्स । पञ्चानाम् अणुव्रतीनाम्, त्रयाणां गुणव्रतानां, चतुर्णा शिक्षाव्रतानां द्वादशविधस्य श्रावकधर्मस्य । । पाँच अणुव्रतों, तीन गुणव्रतों (एवं) चार शिक्षाव्रतों रूप बारह प्रकार के श्रावक धर्म ।
SR No.006126
Book TitleSutra Samvedana Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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