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________________ 'इच्छामि ठामि' सूत्र बारसविहस्स सावगधम्मस्स जं खंडिअं, जं विराहिअं, 1 तस्स मिच्छामि दुक्कडं ॥ अक्षर - १६७ अन्वय सहित संस्कृत छाया एवं शब्दार्थ : भगवन् ! इच्छाकारेण संदिसह देवसिअं आलोटं ? भगवन् ! इच्छाकारेण संदिशत, देवसिकम् (अतिचारं) आलोचयानि ? हे भगवंत ! इच्छापूर्वक मुझे अनुज्ञा दीजिए, मैं दिवसभर में हुए अतिचारों की आलोचना करूं ? गुरु कहे : आलोएह - आलोचय - आलोचना करो. तब शिष्य आज्ञा के स्वीकार रूप कहता है - इच्छं, इच्छामि, मैं (आपकी आज्ञानुसार करने के लिए) इच्छुक हूँ । जो मे देवसिओ अइआरो कओ आलोएमि । १३ यः मया दैवसिकः अतिचारः कृतः (तम्) आलोचयामि । मुझसे दैवसिक दिवस संबंधी जो भी अतिचार हुए हों (उनकी ) मैं आलोचना करता हूँ । = ( और वे अतिचार कैसे हैं एवं किस तरीके से हुए हैं, यह बताते हुए कहता है) काइओ वाइओ माणसिओ, कायिकः वाचिकः मानसिकः, काया संबंधी, वचन संबंधी, मन संबंधी । उस्सुत्तो उम्मग्गो अकप्पो अकरणिज्जो, उत्सूत्रः उन्मार्गः अकल्प्यः अकरणीयः, (और वे अतिचार) उत्सूत्ररूप हों, उन्मार्ग रूप हों, अकल्प्य हों (एवं ) अकरणीय हों,
SR No.006126
Book TitleSutra Samvedana Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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