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________________ सूत्रसंवेदना-३ दैवसिक, रात्रिक, पाक्षिक, चातुर्मासिक एवं सांवत्सरिक इन पाँचों प्रतिक्रमण में इस सूत्र का उपयोग किया जाता है और तब उन उन स्थानों पर ‘देवसिअ' के बदले 'राइयं' इत्यादि बोला जाता है ।। इस सूत्र का उपयोग श्रावक एवं साधुवर्ग दोनों करते हैं, लेकिन श्रमण भगवंत जब इसका उपयोग करते हैं, तब उनके व्रत नियम के अनुरूप शब्द प्रयोग करते हैं । यहाँ श्रावक प्रतिक्रमण का विश्लेषण होने से एवं श्रमण सूत्रों का अन्यत्र विवेचन करने की भावना होने से, श्रमण विषयक सूत्र के शब्दों का यहाँ विवेचन नहीं किया गया है । इस सूत्र का अर्थ करने में मुख्यतया 'आवश्यक नियुक्ति' की हारिभद्रीय टीका का आधार लिया गया है । धर्मसंग्रह, आवश्यक-नियुक्ति-दीपिका योगशास्त्र आदि अनेक ग्रंथों में से भी इस सूत्र संबंधी विशेष जानकारी प्राप्त होती है । गहन अध्ययन करने के इच्छुक जिज्ञासुओं को इन सब ग्रथों को देखना चाहिए। मूल सूत्र: इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! देवसिअं आलोउं ? इच्छं, आलोएमि । जो मे देवसिओ अइआरो कओ, काइओं वाइओ माणसिओ, उस्सुत्तो उम्मग्गो अकप्पो अकरणिज्जो, दुज्झाओ दुविचिंतिओ, अणायारो अणिच्छिअव्वो असावग-पाउग्गो, नाणे, दंसणे, चरित्ताचरित्ते, सुए, सामाइए । तिण्हं गुत्तीणं, चउण्हं कसायाणं, पंचण्हमणुव्बयाणं, तिण्हं गुणव्वयाणं, चउण्हं सिक्खावयाणं,
SR No.006126
Book TitleSutra Samvedana Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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