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________________ पडिक्कमण ठावण सूत्र ९ इस प्रकार यहाँ मात्र तीन पदों में प्रतिक्रमण किसका करना है, इसका संक्षिप्त वर्णन किया गया है । इस संक्षिप्त वर्णन में अनेक दृष्टिकोण एवं भेदों का समावेश हो जाता हैं । जब तक अपने खराब विचार, खराब वाणी या खराब व्यवहार के प्रति दुःख, पश्चात्ताप-तिरस्कार नहीं होता, तब तक प्रतिक्रमण का प्रारंभ ही नहीं हो सकता । इस सूत्र द्वारा इन दुष्ट विचारों, दुष्ट वाणी एवं दुष्ट चेष्टाओं के प्रति एक तीव्र तिरस्कार उत्पन्न होता है, इसीलिए इस सूत्र को प्रतिक्रमण का बीज कहते हैं । पाप के प्रति धृणा की इस भावना पर ही संपूर्ण प्रतिक्रमण की सफलता निर्भर है । इस पद का उच्चारण करते समय साधक सोचता है कि, “आज के दिन विषयों में आसक्त होकर कषायों को वश बनकर, प्रमाद आदि दोषों के कारण मैंने मन से न करने योग्य कितने दुष्ट विचार किये हैं ? मेरे स्वार्थ को पुष्ट करने मेरे कुल को या मेरे धर्म को उचित हो ऐसी वाणी मुझ से कितनी बार ही बोली गई है । शरीर की शोभा इत्यादि के लिए मैंने कितनी ही बार काया की दुचेष्टाओं की है । हे भगवंत मैं ने ये गलत किया है । इसका मुझे दुःख है । दुःख से आर्द्र हृदय से उन सब पाप के लिए मैं मिच्छा मि दुक्कडं देता हूँ। फिर से ऐसा पाप न हो जाए इसलिए संकल्प करता हूँ ।” पाप करते समय जितने तीव्र अशुभ भाव हुए हों यह पद बोलते समय उनसे अधिक तीव्र शुभ भाव उत्पन्न हों याने पाप के प्रति तिरस्कार और पश्चात्ताप का भाव अधिक हो, तो ही किए हुए पाप मिथ्या हो सकते हैं । 1. 'मिच्छा मि दुक्कडं' का विशेष अर्थ सूत्र संवेदना भाग-१ में सूत्र नं. ५ में देखे ।
SR No.006126
Book TitleSutra Samvedana Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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