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सूत्रसंवेदना-३
__ ४५ आगमों के जो ज्ञाता हैं, शिष्य समुदाय को जो निरंतर सूत्र प्रदान करते हैं, जिनके सानिध्य में रहने एवं उपदेश सुनने से दुर्बुद्धि का नाश होता है तथा सद्बुद्धि की प्राप्ति होती है, और जो विनय आदि अनेक गुणों के भंडार हैं, ऐसे उपाध्याय भगवंतों को इस पद द्वारा मस्तक झुकाकर वंदन किया जाता है ।
इस पद को बोलते हुए अपने परम उपकारी तीर्थंकरों के उपाध्याय समान गणधर भगवंत एवं वर्तमान में हुए महामहोपाध्याय श्रीमद् विजय यशोविजयजी म.सा. जैसे उपाध्याय भगवंतों को स्मरण में लाकर उनके प्रति अत्यन्त अहोभाव व्यक्त करके, उनके चरणों में मस्तक झुकाकर वंदन करना चाहिए । उपाध्याय भगवंत को भावपूर्वक वंदन करने से प्रतिक्रमण के सूत्रार्थ विषयक ज्ञान में या प्रतिक्रमण करने में विघ्नकर्ता कर्मों का विनाश होता है ।
सर्वसाधुहं - सर्व साधु भगवंतों को (मस्तक झुकाकर मैं वंदन करता
___ जो सतत मोक्षमार्ग की साधना करते हैं, जो सर्वज्ञ भगवंत की आज्ञानुसार संपूर्ण सात्त्विक जीवन जीते हैं, अनेक साधकों को जो सहायक बनते हैं, तप
और त्याग से जो सुशोभित हैं, उन सभी साधुभगवंतों को इस पद द्वारा मस्तक झुकाकर वंदन किया जाता है ।
इस पद का उच्चारण करते हुए सर्वज्ञ भगवंतों के वचनानुसार जीवन जीने वाले सर्व साधु भगवंतों को स्मृतिपट पर अंकित कर, उनके चरणों में मस्तक झुकाकर, उनको भावपूर्ण हृदय से वंदना करनी चाहिए । ऐसी वंदना प्रतिक्रमण जैसी शुभ क्रिया में सत्त्व का प्रकर्ष करवाती है ।
6. साधुपद की विशेष समझ के लिए देखिए 'सूत्र-संवेदना' भाग-१ (सूत्र नं. १)
श्रावक श्राविकाओं को चार पद बोलकर “समस्त श्रावकों को वंदन करता हूँ" ऐसा कहना चाहिए । 'इच्छकारि समस्त श्रावक वंदु' ऐसा भी कुछ लोग कहते हैं ।