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भगवान् हं सूत्र
भिन्न-भिन्न अभिप्राय सामने आते हैं, परन्तु प्रस्तुत प्रसंग में गुरुवंदन का अधिकार होने से गच्छ के नायक अथवा जिनके द्वारा स्वयं को सम्यक् प्रकार से प्रभु का मार्ग (मोक्षमार्ग - योगमार्ग) प्राप्त हुआ हो, वैसे गुरु भगवंत, तीर्थंकर, गणधर, आचार्य या सामान्य मुनि; सभी को इस पद से ग्रहण करना ज्यादा उचित लगता है; फिर भी, इस विषय पर बहुश्रुत विचार करें, ऐसी विनती
इस पद को बोलते हुए, सुख की परंपरा का सृजन करनेवाले, धर्म को देनेवाले, अनन्य उपकारी गुरु भगवंतों तथा उनके द्वारा किए हुए उपकारों को स्मृतिपट में लाकर, उनके प्रति अत्यंत कृतज्ञ भाव व्यक्त करने हेतु उनके चरणों में मस्तक झुकाकर वंदना करनी चाहिए । भावपूर्वक वंदन करने से गुरु भगवंतों के प्रति आदरभाव की वृद्धि होती है । फलतः सत्कार्य में विघ्नकारी कर्मों का विनाश होता है ।
आचार्यहं - आचार्य भगवंतों को (मस्तक झुकाकर मैं वंदन करता हूँ)
अरिहंत भगवंत की अनुपस्थिति में शुद्ध प्ररूपणा करके जो शासन का उत्तरदायित्व वहन करते हैं, जो पंचाचार के पालन में सदा रत हैं, छत्तीस छत्तीस गुणों से जो शोभायमान हैं, आचार्यपद से जो अलंकृत हैं, ऐसे आचार्य भगवंतों को, इस पद द्वारा मस्तक झुकाकर वंदन किया जाता है ।
इस पद का उच्चारण करते हुए विशिष्ट गुण संपन्न आचार्य भगवंतों को स्मृति पट पर लाकर, उनके किए हुए उपकारों को याद करके, भक्ति एवं आदरपूर्वक उनके चरणों में मस्तक झुकाकर वंदन करना चाहिए । इस तरीके से, वंदना करने से पंचाचार में विघ्न करनेवाले कर्म दूर होते हैं ।
उपाध्यायहं - उपाध्याय भगवंतों को (मस्तक झुकाकर मैं वंदन करता हूँ।) 4. आचार्य पद की विशेष समझ के लिए देखिए ‘सूत्र संवेदना' भाग-१ (सूत्र नं. तथा २) । 5. उपाध्याय की विशेष समझ के लिए देखिए ‘सूत्र-संवेदना' भाग-१ (सूत्र नं. १)