________________
२
सूत्रसंवेदना - ३
आचार्य !...वगैरह) मैं आपको मस्तक झुकाकर वंदन करता हूँ' कृतज्ञता सहित बहुमान भाव प्रकट करना है ।
मूल सूत्र :
यह सूत्र योगशास्त्र की स्वोपज्ञ वृत्ति एवं चिरंतनाचार्य कृत प्रतिक्रमण विधि में देखने को मिलता है । इस सूत्र की भाषा अपभ्रंश है ।
भगवान्हं, आचार्यहं, उपाध्यायहं सर्वसाधुहं ।।
अक्षर-१९
-
अन्वय सहित संस्कृत छाया और शब्दार्थ : भगवान्हं, आचार्यहं, उपाध्यायहं सर्वसाधुहं ।।
भगवद्भ्यः, आचार्येभ्यः, उपाध्यायेभ्यः, सर्वसाधुभ्यः ।।
ऐसा
भगवंतों को, आचार्यों को, उपाध्यायों को और सभी साधुओं को (मैं वंदन करता हूँ)
विशेषार्थ :
भगवान्हं' - धर्माचार्यों को (मैं मस्तक झुकाकर वंदन करता हूँ)
I
'भग' अर्थात् ऐश्वर्यादि गुण एवं 'वान्' अर्थात् वाले । जो ऐश्वर्यादि गुणों से युक्त हैं, जिन्होंने शास्त्र के परमार्थ को प्राप्त किया है, जो सुविशुद्ध संयम को धारण करनेवाले हैं, मोक्ष के महाआनंद को प्राप्त करने एवं अनेक जीवों को इस मार्ग तक पहुँचाने के लिए जो प्रयत्नशील हैं, ऐसे मेरे परम उपकारी गुरु भगवंतों को मैं नमस्कार करता हूँ ।
'भगवान् हं' शब्द अरिहंत का वाचक है या धर्माचार्य का ? इस संबंध में 2. 'भगवान्हं' आदि रूप भगवानादि शब्दों में 'हं' प्रत्यय लगने से बना है । हं प्रत्यय (अपभ्रंश भाषा के नियम अनुसार) षष्ठी बहुवचन में उपयोग हुआ है । प्राकृत में चतुर्थी के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग हो सकता है ।
3. 'भग' की विशेष समझ के लिए देखिए 'सूत्र - संवेदना' भाग - २ 'नमोऽत्थुणं' सूत्र । वहाँ बताया हुआ 'भग' शब्द का अर्थ अरिहंत के लिए सर्वश्रेष्ठ कोटि का बनता है, गुरु भगवंत के लिए उससे अल्प कोटि का बनता है ।